सवाई सिंह की अभिलाषा सफल हुई। वह किसी प्रकार मानसिंह को सिंहासन से उतारना चाहता था। इसके लिए उसने अब तक जितने उपाय सोचे थे, व्यर्थ हो गये थे और अन्त में मित्र बन कर वह मानसिंह को किसी बड़े युद्ध में फंसाने की जो योजना बना रहा था, उसमें इस समय उसे सफलता मिली। जयपुर में मारवाड़ के विरुद्ध युद्ध की घोषणा होते ही सवाईसिंह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने तुरन्त मानसिंह के पास जाकर राजा जगतसिंह का विरोध किया और मानसिंह के प्रति अपनी अपूर्व सहानुभूति दिखाकर वह खेतड़ी चला गया। इसी खेतड़ी में धौकलसिंह अभयसिंह के संरक्षण में रहता था। सवाईसिंह धौकलसिंह को लेकर जयपुर में राजा जगतसिंह से मिला और मानसिंह के द्वारा जयपुर का जो उपहार लूटा गया था उसके सम्बन्ध में वह बिल्कुल अनजान बन गया। जगतसिंह को मालूम हुआ कि मानसिंह के विरुद्ध युद्ध की घोषणा को सुनकर सवाई सिंह धौकलसिंह को साथ में लेकर सहायता के लिए आया है। इसलिए जगतसिंह ने सम्मान के साथ उसके स्वागत का आदेश दिया। सवाईसिंह ने राजा जगतसिंह से भेंट करके बहुत-सी बातें मानसिंह के विरुद्ध कहीं और जगतसिंह को इस बात का विश्वास कराया कि मारवाड़ के साथ इस युद्ध में वहाँ के समस्त सामन्त जयपुर का साथ देंगे। इसलिये कि वे सभी सामन्त मानसिंह के साथ द्वेष रखते हैं और उनको सिंहासन से उतार कर धौकल सिंह को उनके स्थान पर बिठाना चाहते हैं। सवाई सिंह ने जगतसिंह को यह भी बताया कि धौकलसिंह के जन्म लेने के पहले ही मारवाड़ के सभी सामन्तों ने एक प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे जिसमें लिखा गया था कि स्वर्गीय भीमसिंह की विधवा रानी से यदि बालक पैदा होगा तो मानसिंह को सिंहासन से उतारकर उस राजकुमार को राजतिलक किया जायेगा। राजा जगतसिंह को जब इन यथार्थ बातों की जानकारी हो गयी और उसने जब धौकलसिंह को मारवाड़ का उत्तराधिकारी होना समझ लिया तो जगतसिंह ने धौकलसिंह के साथ बैठकर एक थाल में भोजन किया और उसको अपना भान्जा एवं मारवाड़ का उत्तराधिकारी, कहकर सबको जाहिर किया। धौकलसिंह के सम्बन्ध में इस प्रकार का प्रचार होने पर मारवाड़ के समस्त सामन्त अपनी सेनाओं के साथ जयपुर की सेना में आकर मिल गये। इससे जयपुर की सेना शक्तिशाली हो गयी। धौकलसिंह का पक्ष लेकर राठौर वंश के जो सामन्त और श्रेष्ठ लोग जयपुर की सेना में आकर मिल गये थे, उनमें बीकानेर का स्वतंत्र राजा प्रधान था। मानसिंह के विरुद्ध बीकानेर के राजा के खड़े होने पर मारवाड़ के सभी सामन्त एक-एक करके जयपुर में आ गये। मारवाड़ में राजा मानसिंह का साथ देने वाला अब कोई न रह गया। फिर भी, उसने जयपुर की सेना के साथ युद्ध करने की तैयारी की और जयपुर की विशाल सेना के पहुँचने के पहले वह अपनी सीमा पर राठौर सेना को लेकर आ गया। मारवाड़ के सामन्तों की सेनाओं के मिल जाने से जयपुर की सेना के अधिकारी और सैनिक सब मिला कर एक लाख से ऊपर पहुँच चुके थे। इसलिये मारवाड़ का विनाश होने में अब देर न थी। राजा जगतसिंह को मानसिंह से इस बात का बदला लेना था कि मानसिंह ने जयपुर का कीमती उपहार अपनी सेना को लेकर लूट लिया था और मारवाड़ के समस्त सामन्त मानसिंह के विरुद्ध आक्रमण करने के लिये इसलिये तैयार थे कि वे सब मानसिंह के स्थान पर धौकलसिंह को मारवाड़ का शासक बनाना चाहते थे। 494
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