सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लोगों को फिर से प्राप्त हो सकेगा। इस निर्णय के साथ एकत्रित राठौर वहाँ पर राजा जगतसिंह के आने का रास्ता देखने लगे। सेना के साथ जगतसिंह के आते ही राठौड़ों ने उस पर भीषण आक्रमण किया। दोनों ओर से मारकाट आरंभ हो गयी। राजा जगतसिंह ने मारवाड़ के सामन्तों के बल पर ही जोधपुर पर आक्रमण किया था। इस समय उसके साथ सवाईसिंह न था। उसके साथ कोई भी राठौर सामन्त न था। इसलिए राठौड़ों ने जयपुर की सेना को आसानी के साथ पराजित कर लिया और उस सेना के साथ जितनी सम्पत्ति और मूल्यवान सामग्री, जा रही थी, राठौड़ों ने सवकी सब लूट ली। जयपुर की सेना परास्त होकर इधर-उधर भाग गयी। जगतसिंह घबराकर अपने राज्य की तरफ चला गया और जयपुर पहुँचकर उसने किसी प्रकार अपनी जान बचायी। जगत सिंह के साथ जोधपुर की चवालीस तोपें जा रही थीं, राठौड़ों ने उनको छीन लिया। जगतसिंह के जयपुर भाग जाने के पहले सवाईसिंह धौकल सिंह के साथ जोधपुर छोड़कर नागौर चला गया। मारवाड़ के चारों सामन्तों ने अमीर खाँ से मिलकर एक नयी योजना तैयार की। अमीर खाँ धन के लोभ पर ही कोई कार्य कर सकने के लिए तैयार हो सकता था। इसलिए उन सामन्तों के सामने धन का प्रश्न पैदा हुआ। किशनगढ़ का राजा राठौड़ राजपूत था। उसने इसमें किसी की सहायता न की थी और वह पूर्ण रूप से तटस्थ होकर रहा था। इसलिये उन सामन्तों ने अमीरखाँ को देने के लिए किशनगढ़ के राजा से दो लाख रुपये की माँग की। राजा किशनगढ़ ने अपने खजाने से दो लाख रुपये सामन्तों को दिये। ये रुपये अमीरखाँ को दे दिये गये, जिन्हें पाकर अमीरखाँ ने वादा किया- “मैं राजा मानसिंह की हर तरीके से सहायता करूँगा।” इसके वाद वे सामन्त अमीर खाँ को लेकर जोधपुर आ गये। राजा मानसिंह ने बड़े सम्मान के साथ अपने सामन्तों का स्वागत किया और उनके जिन नगरों को छीनकर राज्य में मिला लिया गया था, वे उनको दे दिये गये। इन्दराज सिंधी को मारवाड़ का प्रधान सेनापति बनाया गया। 501