मानसिंह के साथ उसकी शत्रुता पैदा हो गयी है। मानसिंह ने उसके साथ जो अपमानजनक व्यवहार किया है, उसको सहन करने के लिए अमीर खाँ किसी प्रकार तैयार नहीं है। इस समाचार के फैलने में देर न लगी। सवाई सिंह ने भी यह खवर सुनी। वह अपने मन में अत्यन्त प्रसन्न हुआ। अमीर खाँ से भेंट करने के लिए वह किसी अवसर की प्रतीक्षा करने लगा। इन्हीं दिनों में अमीर खाँ ने अपना एक दूत भेजकर सवाई सिंह से कहा कि यदि मुझे इजाजत मिले तो मैं नागौर की पीर तारकीन मस्जिद में आकर वहाँ पर ठहरने के दिनों में रोजाना नमाज पढ़ लिया करूँ। दिल्ली के बादशाह का प्रभुत्व क्षीण हो जाने पर और मारवाड़ से उसका अधिकार हट जाने पर मुसलमानों की मस्जिदें और दरगाहें मरुभूमि में एवम् विशेषकर नागौर में नष्ट कर दी गयी थीं। नागौर में यह कार्य वख्तसिंह के शासन काल में विशेष रूप से हुआ था। किसी प्रकार पीर तारकीन की मस्जिद विध्वंस होने से बच गयी थी। सवाई सिंह नागौर में रहकर पहले से ही चाहता था कि अमीर खाँ से किसी प्रकार भेंट हो। अमीन खाँ ने मानसिंह के साथ पैदा होने वाली शत्रुता का जो प्रचार किया था, उसका वृक्ष फलता-फूलता हुआ दिखायी देने लगा। सवाई सिंह ने अमीर खाँ को पीर तारकीन की मस्जिद में आकर नमाज पढ़ने की इजाजत दे दी। अमीर खाँ अपने शिविर से वलकर नागौर पहुँचा । सवाई सिंह ने सम्मान के साथ उससे भेंट की। वह पीर की मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने लगा और वहाँ से लौटकर जब वह सवाई सिंह से विदा होकर अपने डेरे में आने लगा तो उसने सवाई सिंह से कहा "मैंने मानसिंह के साथ बहुत उपकार किये हैं। उनके पुरस्कार के बदले उसने हमारे साथ जिस प्रकार गंदा व्यवहार किया है, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता।” यह कहकर अमीर खाँ चुप हो गया। सवाई सिंह ने अनुभव किया कि अमीर खाँ निश्चय ही मानसिंह से वहुत असंतुष्ट है। उसके मनोभावों को अनुकूल पाकर सवाई सिंह ने कहा -“यदि आप मानसिंह को सिंहासन से हटाकर धौकल सिंह को उस पर विठाने के लिए सहायता कर सकें तो मैं इस वात का वादा करता हूँ कि आप जितना रुपया माँगेंगे, सिंहासन पर. बैठने के बाद आप को धौकल सिंह देगा।" अमीर खाँ ने सवाई सिंह की बात को सुनकर कहा “मुझे वीस लाख रुपये की आवश्यकता है।" सवाई सिंह ने उत्तर देते हुए कहा "मैं शपथ पूर्वक आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सिंहासन पर बैठने के बाद वीस लाख रुपये आपको धौकल सिंह से मिलेंगे।" सवाई सिंह की वातों को अमीर खाँ ने मंजूर कर लिया। एक संधि पत्र लिखा गया। अमीर खाँ ने कुरान को छूकर प्रतिज्ञा की और संधि को स्वीकार किया। राजपूतों की प्रचलित प्रणाली के अनुसार, सवाई सिंह ने अमीर खाँ के साथ पगड़ी बदली। उसी समय सवाई सिंह ने धौकल सिंह के साथ अमीर खाँ का परिचय कराया। अमीर खाँ ने धौंकल सिंह का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा मैंन आपके साथ जो आज निश्चय किया है, प्राण देकर मैं उसका पालन करूँगा। जोधपुर के सिंहासन पर धौकल सिंह को बिठाने के लिए मैं फिर एक बार प्रतिज्ञा करता हूँ।" अमीर खाँ से प्रसन्न होकर सवाई सिंह ने बहुमूल्य चीजें उसको भेंट में दी। इसके वाद अमीर खाँ ने सवाई सिंह को गुप्त रूप से कोई बात प्रकट की और उसके बाद वह नागौर से मूंधियाड़ चला गया। € 503
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