पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४६०

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जयपुर का मित्र बनकर अमीर खाँ ने मारवाड़ का सर्वनाश किया और मारवाड़ का मित्र बनकर उसने जयपुर तथा उम्पके सहायक राज्यों का सर्वनाश किया। अव उसने फिर मारवाड़ की तरफ दृष्टिपात किया। मारवाड का राजा मानसिंह उसके हाथ की कठपुतली हो रहा था। अमीर खाँ ने न केवल मानसिंह के मन और मस्तिष्क पर शासन आरंभ किया बल्कि उसने मारवाड़ की शक्तियों को अपने अधिकार में लेना आरंभ किया। संपूर्ण मारवाड़ में अमीर खाँ का आतंक फैल गया और राज्य के बढ़े कायों में उसी का आतंक काम करने लगा। राजा मानसिंह ने स्वयं उसको प्रधानता दे रखी थी। इसलिए अमीर खाँ ने राठौड़ सामन्तों पर अपना आतंक पैदा करने की चेष्टा की, उसका प्रभुत्व लगातार वहाँ बढ़ने लगा। राजा मानसिंह ने अमीर खाँ की सहायता से अपनी भयानक विपदाओं से मुक्ति पायी थी। उसी की सहायता से मानसिंह ने अपने शत्रुओं को परास्त किया था। इसलिए जिसके इतने उपकार मानसिंह के सिर पर थे, वह मानसिंह उस परोपकारी के विरुद्ध इस समय कैसे आवाज उठा सकता था। मानसिंह समझता था कि राज्य पर उसका अत्याचार हो रहा है। परन्तु उसने कुछ सकने अथवा विरोध करने का साहस न किया। अमीर खाँ ने मनमानी सम्पत्ति मानसिंह से वसूल की थी। तीस हजार रुपये वार्षिक की आमदनी के दो प्रसिद्ध नगर उसने राजा मानसिंह से अपनी बहादुरी के पुरस्कार में पाये थे। एक सौ रुपये नित्य उसे अलग से मिलता था। राज्य की सभी सुविधायें बिना किसी मूल्य के उसको अपने आप प्राप्त थीं। इतना लाभ उठाकर भी अमीर खाँ को संतोष न हुआ। इसलिए राज्य के कई एक ग्रामों और नगरों पर उसने अपना अधिकार कर लिया। परन्तु राजा मानसिंह उससे कभी कुछ कह न सका। इतना सब कुछ होने के बाद भी अमीर खाँ ने अपने अधिकारों का विस्तार मारवाड़ राज्य में किया। उसने अपने सेनापति गफूर खाँ के नेतृत्व में एक सेना नागौर के दुर्ग में भेज दी और प्रसिद्ध मेड़ता की जागीर को नागौर से अलग करके उसने अपने अधिकार में कर ली। इसके बाद भी वह अपने अधिकार को बढ़ाता रहा। उसने अपनी एक सेना नावा के दुर्ग में भेज दी और नावा नगर के साथ-साथ साँभर का विस्तृत इलाका भी उसने अपने अधिकार में कर लिया। मारवाड़ राज्य में अमीर खाँ के इस शासन के विस्तार को देखकर भी राजा मानसिंह विरोध करने का साहस न कर सका। राजा मानसिंह के दरबार में अमीर खाँ का प्रभुत्व काम कर रहा था। जो राठौर सामन्त राज-दरबार में आते थे, उनको कुछ कहने-सुनने का अधिकार न था। यदि कभी कोई सामन्त राज्य की दुरवस्था को उपस्थित करके कुछ कहने का साहस करता तो उसे अपमानित हो कर चुप हो जाना पड़ता। मारवाड़ की इस बढ़ती हुई दुरवस्था को देखकर सामन्तों ने आपस में परामर्श किया कि मानसिंह राज्य में जो कुछ भी करता है, उसमें इन्द्रराज और राजगुरु देवनाथ की सम्मति रहती है। इसका अर्थ यह है कि अमीर खाँ ने राज्य में जो अत्याचार कर रखा है, उसके अपराधी इन्दराज और देवनाथ प्रधान रूप से हैं, इसलिए सामन्तों ने निश्चय किया कि इन्दराज और देवनाथ जब तक जीवित रहेंगे, अमीर खाँ के अत्याचार इन राज्य में कभी समाप्त नहीं हो सकते । इसलिए जैसे भी हो सके इस दोनों के जीवन का अन्त किया जाये, परन्तु उनका अन्त करे कौन? यह प्रश्न राज्य के सामन्तों के सामने पैदा हुआ। उन सामन्तों के सामने बड़ी गंभीर परिस्थिति थी। अमीर खाँ के अत्याचारों से मेवाड़ राज्य की दशा अत्यन्त ही दुर्बल हो गयी थी और सभी की समझ में यह आ गया था कि जब तक राजद्रोही इन्दराज और देवनाथ का अन्त न होगा, उस समय तक अमीर खाँ - 506