के अत्याचार नहीं रोके जा सकते । वहुत सोच-समझ कर उन सामन्तों ने धन के लोभी अमीर खाँ से यह काम करवाने का निश्चय किया गया। अमीर खाँ ने उसे स्वीकार कर लिया। उसने कहा - “इस कार्य के लिए मैं सात लाख रुपये लूँगा और उन दोनों को संसार से विदा कर दूँगा।” सामन्तों ने अमीर खाँ की इस मांग को स्वीकार कर लिया और उसके बाद अमीर खाँ ने अपना कार्य आरम्भ कर दिया। उसने इन्दराज के नेतृव में काम करने वाली पठान सेना को भड़का दिया, उसने अपना वहुत दिनों का वाकी पड़ा हुआ वेतन माँगा और उस सिलसिले में ऐसा संघर्ष हुआ, जिसमें राजगुरु देवनाथ के साथ मन्त्री इन्दराज मारा गया। • देवनाथ के मारे जाने पर मानसिंह वहुत दुःखी हुआ। उसने अपने जीवन में भीषण कठिनाइयों का सामना किया था। परन्तु उसके हृदय पर इस प्रकार का घातक प्रभाव नहीं पड़ा था, जिस प्रकार राजगुरु के मारे पर उसके ऊपर प्रभाव पड़ा। इन दिनों में वह राजगुरु देवनाथ की सम्मति से अपने सभी कार्य करता रहा था। उसने राजगुरु का बहुत विश्वास किया था। अव उसका कोई ऐसा सहायक न रह गया, जिसके परामर्श पर वह अपनी आँखें वन्द करके काम कर सकता। इसलिए अपने जीवन में विल्कुल निराश होकर उसने राज्य के कार्यों से वैराग्य ले लिया। उसने राज दरवार में जाना वन्द कर दिया। परिवार के लोगों से लेकर मंत्रियों तक सव के साथ उसने वातचीत करना वन्द कर दिया। उसके इस वैराग्य को देखकर सभी लोग चिन्तित हो उठे। राजा मानसिंह की इस उदासीनता को देख कर राज्य के सामन्तों ने उसके साथ बातें की और जब उनको उससे कोई आशा न पैदा हुई तो सामन्तों ने उसके एक मात्र वेटे छत्रसिंह को सिंहासन पर विठा कर राज्य का कार्य आरंभ किया। राजा मानसिंह ने स्वयं अपने हाथों से छत्रसिंह के मस्तक पर राजतिलक किया। राजकुमार छत्रसिंह ने अभी हाल में ही यौवनावस्था में प्रवेश किया था। उसको शासन करने का ज्ञान न था। इसलिए राज्य की दुरवस्था के प्रति ध्यान न देकर वह विलासिता में पड़ा रहता। इसका परिणाम यह हुआ कि वह सभी के निकट अप्रिय हो गया। है मानसिंह के वैराग्य को देखकर सामन्तों ने बड़ी आशाओं के साथ छत्रसिंह को सिंहासन पर विठाया था। परन्तु वह अत्यन्त अयोग्य निकला। इसलिए राज्य के सामन्त और मन्त्री फिर से चिन्तित रहने लगे। इन्हीं दिनों में वह बीमार हो गया और एक दिन अचानक उसकी मृत्यु हो गयी। उसके मरने के सम्बन्ध में कुछ लोगों का एक दूसरा ही मत । उनका कहना है कि छत्र सिंह ने एक रूपवती युवती पर मोहित होकर उसका धर्म नष्ट किया था। इसी अपराध में वह मारा गया। इन दोनों वातों में सही क्या है, इसका निर्णय नहीं किया जा सकता । कुछ भी हो छत्रसिंह की असमय मृत्यु हुई। राजा मानसिंह के मानसिक उन्माद का यह दूसरा कारण हुआ। राजगुरु देवनाथ के मारे जाने पर उसने राज्य के शासन से विरक्ति ले ली थी और उसने एकान्त में रहकर जीवन व्यतीत करना आरंभ किया था। उसके बाद प्रिय पुत्र छत्रसिंह की मृत्यु से उसके अन्तरतम को ऐसा आघात पहुंचा, जिससे जीवन के प्रति उसे कोई आसक्ति न रह गयी। छत्रसिंह मानसिंह का इकलौता बेटा था। वह अयोग्य था और मारवाड़ के सिंहासन पर बैठने के योग्य न था। फिर भी वह अपने पिता का अकेला लड़का था। इसलिए राजा मानसिंह का उस पर अगाध स्नेह होना पूर्ण रूप से स्वाभाविक था। इसलिए मृत्यु के बाद निसि में से अश्रद्धा हो गयी। राज्य के स; 507
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