पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इस प्रकार की परिस्थितियों में चिन्तित होकर राठौर सामन्तों ने आपस में परामर्श करके निश्चय किया कि मानसिंह के सिंहासन पर न बैठने पर ईडर के राजकुमार को लाकर अभिषेक किया जाये और सिंहासन पर बिठाया जाये। मानसिंह के सिंहासन पर बैठने का इस समय सामन्तों के सामने कोई प्रश्न नहीं था। इसलिए कि कई बार प्रार्थना करने पर उसने इंकार कर दिया था। सामन्तों ने इसके सम्बन्ध में ईडर के राजा के पास अपना समाचार भेजा। उसका उत्तर देते हुए ईडर के राजा ने कहा -“हमारे यही एक लड़का है। इसलिए किसी भी इस प्रकार के अवसर के लिए हमको न इच्छा है और न हमारी उत्सुकता है। लेकिन यदि मारवाड़ के सभी सामन्त इस प्रस्ताव में एक मत हों तो मैं इसके लिए इंकार न करूँगा। परन्तु दो-चार सामन्तों के प्रस्ताव करने पर मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता।" ईडर के राजा का उत्तर पाकर मारवाड़ के सभी सामन्तों ने एकत्रित होकर आपस में परामर्श किया और सभी की सम्मति लेकर यह निश्चय किया गया कि राजा का भार संभालने के लिए पहले राजा मानसिंह से प्रार्थना की जाये । इस निर्णय के अनुसार सामन्तों को फिर से मानसिंह पर निर्भर होना पड़ा। वे लोग राजा मानसिंह से जाकर मिले और मारवाड़ की दुरवस्था का एक चित्र सामन्तों ने उसके सामने रखा। इसके साथ-साथ सामन्तों ने मानसिंह को यह भी बताया कि ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ जो संधि की गयी है और वह आपके सामने आने वाली है, उस पर भी आपको विचार करना है। इस प्रकार की अनेक बातें कहकर उपस्थित सामन्तों ने प्रार्थना की कि आपको अपने शासन का भार न लेने पर मारवाड़ राज्य की दशा सभी प्रकार खराव हो जायेगी। सामन्तों ने राजा मानसिंह से इस विषय में बड़ी देर तक बातचीत की। राजा मानसिंह ने सामन्तों का विशेष आग्रह देखकर शासन भार स्वीकार करने के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। राजकुमार छत्रसिंह के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी की जो संधि होने जा रही थी, उसकी अनेक वातों पर मानसिंह ने असंतोष प्रकट किया। उस संधि में यह भी लिखा गया था कि अधीन सामन्तों की सेना को आवश्यकता पड़ने पर ईस्ट इंडिया कंपनी अपने अधिकार में ले लेगी। राजा मानसिंह ने संधि की इस शर्त पर विशेष रूप से अपना विरोध प्रकट किया। सन 1817 ईसवी में मारवाड़ के दूत व्यास विष्णु राम नामक ब्राह्मण की उपस्थिति में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ दिल्ली में यह संधि लिखी गयी थी। मानसिंह का लड़का छत्रसिंह उन दिनों में मारवाड़ राज्य के सिंहासन पर था। इस संधि के एक वर्ष वाद सन् 1818 ईसवी में दिसम्बर में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रतिनिधि मिस्टर विल्डर जोधपुर गया था। उसको उस राज्य की वास्तविक परिस्थितियों की रिपोर्ट ईस्ट इंडिया कम्पनी के सामने उपस्थित करनी थी। अखय चंद उन दिनों में मारवाड़ का दीवान था और सालिम सिंह को राठौड़ सामन्तों ने राज्य का प्रबंध करने के लिए नियुक्त किया था। उन दिनों में आवश्यकतानुसार राज्य में अनेक प्रबंध किये गये थे और अनेक प्रधान पदों पर काम करने के लिए कर्मचारियों को नियुक्त किया गया था। इन दिनों की व्यवस्था में सामन्तों का परस्पर विद्रोह चल रहा था और उनके द्वारा राज्य में जो उपद्रव हो रहे थे, स्वर्गीय इन्दराज के केटे फतेह राज ने उनका विरोध किया था। फतेह राज जोधपुर की राजधानी में एक पदाधिकारी था। वह अपने स्वर्गीय पिता इन्दराज का बदला लेने के लिए सामन्तों की व्यवस्था में वाधायें पैदा करता था। ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रतिनिधि मि. विल्डर जोधपुर जाकर तीन दिन तक वहाँ पर रहा और उसके बाद वह गुप्त रूप से राजा मानसिंह से मिला। उसने राज्य की परिस्थतियाँ मानसिंह के सामने रखीं और उसने मानसिंह से कहा -“सामन्तों के 509