पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४६४

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स्वेच्छाचार और अन्याय को दूर करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी सेना लेकर आपकी सहायता कर सकती है।" मानसिंह विचारशील और दूरदर्शी था। उसने कंपनी के प्रतिनिधि की इस बात को सुनकर धन्यवाद दिया और कहा 'आवश्यकता पड़ने पर में कंपनी से सैनिक सहायता लूँगा।" मानसिंह ने बड़ी बुद्धिमानी के साथ अंग्रेज प्रतिनिधि को उत्तर दिया। उसने अपने मन में विचार किया कि राज्य के सामन्तों को नियंत्रण में लाने के लिए अंग्रेजी सेना की सहायता आवश्यक नहीं है । इस प्रकार की सहायता के दुष्परिणाम को समझने में मानसिंह को देर न लगी। जीवन के आरंभ से ही वह इस प्रकार की बातों में दूरदर्शी था। राजा मानसिंह ने सामन्तों के अप्रिय कार्यों पर कठोर व्यवहार करना उचित नहीं समझा। बल्कि उसने ऐसे मौकों पर सामन्तों के साथ उदारता का व्यवहार आरंभ किया। राठौर सामन्त दो श्रेणियों में विभाजित होकर कार्य कर रहे थे। एक श्रेणी राजा के प्रति अपनी भक्ति का प्रदर्शन करती थी और दूसरी श्रेणी प्रतिकूल वातावरण को प्रोत्साहन देती थी। मानसिंह ने गंभीरता के साथ शासन कार्य संचालन किया। उसने सामन्तों की मनोवृत्तियों का अध्ययन किया और दोनों श्रेणी के सामन्तों में से योग्य व्यक्तियों को निकाल कर राज्य के ऊँचे पदों पर नियुक्त कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि मानसिंह के व्यवहारों पर दोनों श्रेणी के सामन्तों को संतोष हुआ। जो सामन्त विद्रोहात्मक कार्यों में सहायता कर रहे थे, मानसिंह ने उनके साथ भी उदारता का व्यवहार किया। इन दिनों में उसने बड़ी बुद्धिमानी से काम लिया। अंग्रेज प्रतिनिधि ने मिल कर मानसिंह को समझाने की कोशिश की थी और कहा था-"कंपनी की सैनिक सहायता के विना आप किसी प्रकार अपने राज्य में शांति कायम नहीं कर सकते।" राजा मानसिंह ने नम्रता के साथ प्रतिनिधि की इस बात का विरोध किया और उसने उसको उत्तर देते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा- 'कंपनी की इस सहायता के लिए धन्यवाद है। परन्तु अपने राज्य में शान्ति कायम करने के लिए मुझे बाहरी सेना की आवश्यकता नहीं है।" अंग्रेज प्रतिनिधि मि. विल्डर ने मारवाड़ में फैली हुई भयानक अशांति और अराजकता को अपने नेत्रों से देखा था। सामन्तों पर राजा का कोई प्रभाव न रह गया था और वे भयानक रूप से मनमानी कर रहे थे। राज्य की इस दुरावस्था में प्रजा के कष्ट इतने बढ़ रहे थे, जिनको लिखा नहीं जा सकता। उस प्रतिनिधि ने जोधपुर में भी इसी प्रकार की परिस्थितियाँ देखी थीं। उस प्रतिनिधि ने स्वयं स्वीकार किया था कि सामन्तों के स्वेच्छाचार के कारण राज्य में मानसिंह का कोई प्रभाव न रह गया था। सभी राज कर्मचारी अनुशासन हीन हो गये थे और राज्य की प्रजा वरावर लूटी जा रही थी। राजा मानसिंह की निर्वलता इतनी बढ़ गयी थी कि वह सामनतों के किसी भी अनुचित कार्य में हस्तक्षेप करने का साहस नहीं करता था। उसके अधिकार में जो वैतनिक सेना थी, आर्थिक कष्टों के कारण सभी प्रकार असमर्थ हो रही थी। उसका पिछले तीन वर्षों का वेतन वाकी था। उसके न मिलने से उस सेना का कट और असंतोष बहुत बढ़ गया था। उस सेना के सैनिक राजधानी में प्रजा से माँगकर कभी-कभी अपना पेट भर लेते थे। लेकिन सेना के अधिकांश सैनिक प्राय: अनाहार रहा करते थे। इस प्रकार राजधानी से लेकर राज्य के प्रत्येक नगर और ग्राम तक भयानक दुरवस्था फैली हुई थी। सन् 1819 ईसवी में उदयपुर, कोटा, बूंदी और सिरोही के राज्यों की तरह ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल के द्वारा में मारवाड़ राज्य का राजनैतिक एजेंट बनाया 510