मानसिंह के संदेश का सामन्तों ने विश्वास नहीं किया, इसके कुछ और भी कारण थे। ओनाड सिंह मानसिंह का एक मित्र था। उसके एक निजी अनुचर को मानसिंह ने स्वयं आज्ञा देकर कुछ दूसरे आदमियों के साथ राज-दरवार में बुलाया था। परन्तु वह नहीं गया और उसके अविश्वास ने ही उसके प्राणों की रक्षा की। नीजाम का सामन्त सुरतान सिंह अपनी सेना के साथ जोधपुर की राजधानी में रहा करता था। मानसिंह की भयानक विपदाओं में सुरतान सिंह ने बड़ी सहायता की थी। लेकिन मानसिंह ने उसके उन सभी उपकारों को भुला दिया और अपनी आठ हजार वैतनिक सेना को तोपों और गोलंदाओं के साथ लेकर सुरतान सिंह पर आक्रमण किया। उस समय सुरतान सिंह के साथ केवल एक सौ अस्सी सैनिक थे। तोपों के द्वारा गोलों की वर्षा होने पर सुरतान सिंह ने अपने सैनिकों के साथ तलवार लेकर मानसिंह की सेना का सामना किया। उसने और उसके साथ के शूरवीर सैनिकों ने मानसिंह के सैकड़ों आदमियों को काट-काट कर फेंक दिया और अंत में उन सभी ने अपने प्राण दे दिये। सुरतान सिंह के कुछ इने-गिने सैनिक बच गये और वे सुरतान सिंह के परिवार के लोगों को लेकर नीमाज की तरफ भाग गये। सालिमसिंह को भी इसी प्रकार हत्या करने का इरादा मानसिंह ने किया था। परन्तु सुरतान सिंह पर अनायास आक्रमण करके वह कुछ ऐसा हताश हो गया जिससे वह सालिम सिंह पर आक्रमण न कर सका ( सालिम सिंह किसी प्रकार जोधपुर से निकल कर मारवाड़ चला गया। इसके बाद फतहराज को बुलाकर मानसिंह ने राज्य का दीवान बना दिया। फतहराज स्वर्गीय इन्दराज का भाई था और वह राजा मानसिंह का प्रिय हो रहा था। राजा मानसिंह ने अखयचन्द और उसके सहायक लोगों से जो एक बहुत बड़ी सम्पत्ति वसूल की थी उससे वैतनिक सेना का बकाया वेतन अदा किया । अखयचन्द के मारे जाने से साथ-साथ राज्य के दूसरे सामन्त बहुत भयभीत हो उठे थे। उस समय उन लोगों ने निश्चित रूप से संगठन करके राजा मानसिंह पर आक्रमण किया होता, लेकिन मारवाड़ में यह अफवाह जोरों के साथ फैल चुकी थी कि राजा मानसिंह ने राज्य में शान्ति कायम करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी से अंग्रेजी सेना की सहायता माँगी है और वह सेना किसी भी समय जोधपुर में आकर मानसिंह के आदेश का पालन कर सकती है। केवल इस भय से राज्य के असंतुष्ट सामन्तों ने मानसिंह के विरुद्ध कुछ करने का साहस नहीं किया। नीमाज के सामन्त सुरतानसिंह के राजधानी में मारे जाने पर नीमाज के कुछ सैनिक सुरतान सिंह के परिवार को लेकर नीमाज चले गये थे। उस परिवार में सुरतान सिंह का एक छोटा सा वालक था। उसको खत्म करने के लिए मानसिंह ने अपनी एक सेना नीमाज पर आक्रमण करने के लिए भेजी। उस सेना का सामना करने के लिए नीमाज के समस्त निवासी तैयार हो गये। उस दशा में राज मानसिंह के हस्ताक्षरों का एक पत्र सुरतान सिंह के वालक के नाम दिया गया । उस पत्र में लिखा था कि सुरतान सिंह के अपराध को क्षमा करके नीमाज का राज्य तुमको दे दिया जायेगा। उसे लेने के लिए राज दरवार में तुम्हारा आना आवश्यक है। सुरतान के पुत्र ने मानसिंह के इस पत्र का विश्वास नहीं किया। उस समय जो सेना जोधपुर से नीमाज पर आक्रमण करने के लिए आयी थी, उसके सेनापति ने सुरतान सिंह के लड़के को विश्वास दिलाया और कहा - "राजा मानसिंह के पत्र की सच्चाई का उत्तरदायी मैं हूँ। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि राजा मानसिंह ने इस पत्र में जो लिखा है, उसका पालन मैं करूंगा।" 514
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