सुरतान सिंह के लड़के ने उस सेनापति की बात का विश्वास कर लिया और अपने दुर्ग से निकलकर मानसिंह के शिविर में पहुँचा उसके पहुँचते ही पत्र के विरुद्ध उसके साथ कार्यवाही की गयी। एक अन्य राज पुरुष ने अपने साथ का आज्ञा-पत्र देकर उस लड़के से कहा :-“महाराज ने आपको कैद करके राज दरवार में लाने का आदेश दिया है।" यह राजपुरुष उस सेना का सेनापति नहीं था, जो नीमाज पर आक्रमण करने के लिए गयी थी और मानसिंह के पत्र पर विश्वास दिलाकर जिसने नीमाज के राजकुमार उस वालक को आत्म समर्पण करने के लिए तैयार किया था। उस सेनापति ने राजा के आदेश को पढ़ कर कहा "मुझे राजा के इस आदेश पर आश्चर्य हो रहा है। इसके पहले नीमाज में बालक राजकुमार को बुलाने के लिए जो पत्र दिया गया था, वह कुछ और था और यह कुछ और है। यह वालक मेरे विश्वास दिलाने पर यहाँ आया है। इसलिए मैं इसके साथ विश्वासघात न करूँगा।" यह कह कर वह सेनापति अपने साथ उस बालक को लेकर अरावली पहाड़ पर चला गया और उसने उसे ऐसे स्थान पर पहुंचा दिया, जहाँ से वह बालक सुरक्षित मेवाड़ चला गया। राजा मानसिंह ने राज्य के सामन्तों को शक्तिहीन वनाने के लिए जो कुछ किया और जिस प्रकार के उपायों का आश्रय लिया, उसका वर्णन ऊपर किया जा चुका है। निरंकुश सामन्तों ने मानसिंह के इन कार्यों और व्यवहारों को समझते और जानते हुए भी विरोध करने का साहस न किया। उनको मालूम था कि ईस्ट इंडिया कंपनी की अंग्रेजी सेना किसी भी समय राज्य में आकर हम लोगों का विध्वंस और विनाश कर सकती है। मारवाड़ के सामन्त मानसिंह के अत्याचारों से कुछ महीनों में इतने भयभीत हो उठे। कि वे मारवाड़ छोड़कर अन्यत्र भाग जाने का इरादा करने लगे। उनके सामने इस समय अपनी रक्षा के लिए कोई उपाय न था। इसलिए विवश होकर उन लोगों ने मारवाड़ राज्य छोड़ दिया और वे उसके पड़ोसी राज्यों में अपने परिवारों को लेकर चले गये। राजा मानसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ सम्बंध जोड़कर सभी प्रकार का लाभ उठाया। उसने विरोधी सामन्तों को राज्य से निकाल देने में सफलता पायी। उसने राज्य की भयानक अराजकता में शांति कायम करने के लिए वह कार्य किया, जो उसके पूर्ववर्ती राजाओं में किसी के द्वारा न हो सकता था। मारवाड़ के सामन्त अपने राज्य को छोड़कर कोटा, मेवाड़, बीकानेर और जयपुर में जाकर रहने लगे। राजा मानसिंह ने सामन्त ओनाड सिंह के साथ भी अपनी सहानुभूति और उदारता का प्रदर्शन न किया, जिसकी अनेक सहायतायें मानसिंह को मिली थीं। उसने उन सभी उपकारों को भुला दिया, जिसके द्वारा भयानक विपदाओं के समय उसके प्राणों की रक्षा हुई थी । अनाड़ सिंह ने मानसिंह की भीषण आर्थिक कठिनाइयों में अपनी स्त्री के आभूषणों को वेच कर सहायता की थी और उसने उस सहायता के समय अपनी स्त्री की नाक की नथ भी वेच डाली थी, जिसका उतारना राजस्थान के राजपूतों में अपशकुन माना जाता था। जिस समय पाली में मानसिंह पर शत्रुओं ने भयानक आक्रमण किया था और मानसिंह विना घोड़े के पैदल था, उस समय अनाड़ सिंह ने बड़े साहस के साथ अपने घोड़े पर मानसिंह को विठा कर वहाँ से भगाकर उसके प्राणों की रक्षा की थी। जिस समय मारवाड़ के सामन्तों ने मानसिंह का पक्ष छोड़कर धौकलसिंह के पक्ष का साथ दिया था और जयपुर की सेना के साथ अनेक सेनाओं ने मानसिंह पर आक्रमण किया था, उस समय राज्य के केवल चार सामन्तों ने मानसिंह का साथ दिया था और उन चार सामन्तों में अनाड़ सिंह प्रमुख था। 515
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