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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४७२

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अध्याय-46 मारवाड़ क्षेत्र का सामान्य वर्णन - मारवाड़ की राजधानी जोधपुर पश्चिम में गिराप और पूर्व की ओर अरावली पहाड़ के शिखर पर श्यामगढ़ के बीच में है। इस राज्य की लंबाई पश्चिम से पूर्व तक दो सौ सत्तुर मील है। सिरोही की सीमा से मारवाड़ की उत्तरी सीमा तक इस राज्य के जितने भी नगर हैं, वे सभी बड़े हैं। जिसकी लंबाई दो सौ वीस मील है। डीडवाना और जालौर के उत्तर पूर्व से साँचोर की सीमा के दक्षिण पश्चिमी कोने तक साढ़े तीन सौ मील की लंबाई है। लूनी नदी ने मारवाड़ के नगरों की अवस्थाओं में परिवर्तन कर दिया है। यह लूनी नदी मारवाड़ की पूर्वी सीमा के पुष्कर से निकलकर, पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है और उसके द्वारा राज्य के दो भाग हो जाते हैं। एक भाग उपजाऊ और दूसरा भाग अनुपजाऊ हो जाता है। इसी नदी के कारण दक्षिणी किनारे से अरावली पर्वत के ऊपर तक के सभी ग्राम और नगर सम्पत्तिशाली वन गये हैं। डीडवाना, नागौर, मेड़ता, जोधपुर, पाली, सोजत, गोडवाड, सिवाना, जालौर, भीनमाल और साँचोर नगरों में अधिकांश भूमि उपजाऊ है। उनमें रहने वालों की संख्या अधिक है और इन नगरों के निवासी एक वर्ग मील में अस्सी मनुष्यों की संख्या में रहा करते हैं । मारवाड़ की जनसंख्या का अनुमान वीस लाख है। मारवाड़ में जाट लोगों की संख्या प्रत्येक आठ में पाँच है, राजपूतों की दो है। शेष लोगों में ब्राह्मण, व्यवसायी और दूसरे लोग हैं। इस हिसाब से मारवाड़ में राजपूतों की संख्या पाँच लाख है और उनमें पचास हजार सैनिक राजपूत हैं। यहाँ की छत्तीस जातियों के राजपूतों में राठौड़ों ने अधिक सम्मान प्राप्त किया है। यद्यपि अफीम का सेवन करने के कारण इन राजपूतों ने अपने गौरव को बहुत कुछ नष्ट कर दिया है, फिर भी मुगलों के शासन काल में राठौड़ों को अधिक सम्मान मिला था। मारवाड़ के राठौड़ों में स्वाभिमान था और उसी के कारण आक्रमणकारियों ने उन पर अधिक अत्याचार किये थे। औरंगजेब स्वयं इन स्वाभिमानी राजपूतों से अधिक ईर्ष्या करता था। राजा मानसिंह के समय राठौड़ों की शक्तियों का विनाश हुआ। उस समय उनकी संख्या भी बहुत कम हो गयी थी। लगातार आक्रमणों और अत्याचारों में पड़े रहने के कारण राठौड़ों के नैतिक जीवन को बहुत अधिक आघात पहुँचा। इसके पहले इस वंश के राठौड़ अपने ऊँचे चरित्र के लिए बहुत प्रसि थे। इन राजपूतों में संगठन की शक्ति और आवश्यकता पड़ने पर जातीय गौरव के लिए वे हँस हँसकर बलिदान होते थे परन्तु विनाश और विध्वंस के दिनों उनकी ये शक्तियाँ क्षीण पड़ गयी थीं और इसीलिए । 518