पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४७४

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अधिक सम्पन्न रहते थे। इसीलिए आक्रमणकारियों की लूट इन स्थानों पर अधिक हुआ करती थी। अच्छी मिट्टी होने के कारण इन नगरों की भूमि सबसे अधिक उपजाऊ थी और वहाँ पर गेहूँ, जौ, धान, ज्वार, मूंग और तिल अधिक पैदा होता था। रेतीली भूमि में केवल बाजरा, मूंग और तिल की पैदावार होती है। इस राज्य में अनाजों की पैदावार इतनी अधिक होती थी कि जिससे कभी दुर्भिक्ष का भय न रहता था और अनाज के अभाव में वह राज्य के एक स्थान से दूसरे स्थान में आसानी से पहुँचाया जाता था। नागौर राज्य में पाँच सौ छः नगर और ग्राम हैं। उनका अधिकारी मारवाड़ का राजकुमार होता है। यह राज्य अनेक प्रकार की सुविधाओं के लिए श्रेष्ठ माना जाता था। खेती के लिए वहाँ पर कुओं की संख्या बहुत अधिक थी और वहाँ के कृषक अपनी खेती में कुओं के द्वारा अधिक लाभ उठाते थे। मारवाड़ की खाने - इस राज्य में अनाजों की पैदावार की अपेक्षा खनिज पदार्थों की पैदावार अधिक होती थी और ये पदार्थ भारत के प्रत्येक भाग में इस राज्य से पहुँचते थे। पंचभद्रा, डीडवाना और साँभर से पैदा होने वाला नमक इस राज्य की आमदनी का सदा विशेष साधन रहा था। यह नमक इस राज्य में तैयार होकर देश के समस्त बाजारों में पहुँचता है। मारवाड़ के पूर्व में मकराना नामक एक स्थान है। वहाँ पर संगमरमर की खान थी और उन खान से निकले हुए पत्थरों के द्वारा इस देश की सभी प्रसिद्ध इमारतें किसी समय में बनी थीं। मुगलों के शासनकाल में इस खान निकले हुए कीमती पत्थर राज महलों में लगाये गये थे। दिल्ली और आगरा के सभी प्रसिद्ध मकानों, राजप्रासादों, शिवालयों, मस्जिदों और दूसरी इमारतों में यहाँ के संगमरमर को लगाकर उनकी ख्याति की वृद्धि की गयी है। मारवाड़ के राज्य में खनिज पदार्थों के द्वारा होने वाली आमदनी राज्य की प्रधान आमदनी थी। जोधपुर और नागौर के पास श्वेत पत्थर की खानें थी। सोजत में टीन और सीसे की खान थी। पाली में फिटकरी तथा भीनमाल और गुजरात के करीब लोहे की खाने थीं। इन खानों से जो पैदावार होती थी, उनसे किसी समय मारवाड़ राज्य को धन की अपरिमित आमदनी होती थी। शिल्पकुला- यह राज्य शिल्प में कभी श्रेष्ठ नहीं रहा। यहाँ पर सूत के मोटे कपड़े और कम्बल तैयार किये जाते थे, जो इसी देश में खप जाते थे। बन्दूक, तलवार और युद्ध के दूसरे अस्त्र-शस्त्र जोधपुर की राजधानी में और पाली में बनते थे। पाली के बने हुए लोहे के सन्दूक बहुत प्रसिद्ध माने जाते थे। लोहे की कढ़ाइयाँ और कढ़ाह यहाँ पर बहुत मजबूत और टिकाऊ बनते थे। व्यवसाय के सबसे प्रसिद्ध स्थान राजपूत राज्यों में सर्वत्र व्यावसायिक स्थान पाये जाते थे। मेवाड़ में भीलवाड़ा, बीकानेर में चूरू और जयपुर में मालपुर वाणिज्य के लिए बहुत प्रसिद्ध माना जाता था। ठीक इसी प्रकार मारवाड़ में पाली नगर बहुत प्रसिद्ध व्यावसायिक स्थान था और राजस्थान में सबसे अधिक प्रसिद्ध माना जाता था। उन दिनों में भारतीय व्यवसायी नब्बे प्रतिशत से भी अधिक जैन धर्मावलंबी थे। खेतरी नामक नगर के व्यवसायी हजारों की संख्या में व्यवसाय के लिए इस देश के दूसरे प्रांतों में जाते थे। ओसिया नामक स्थान में जो व्यवसायी रहते थे, वे ओसवाल के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी संख्या लगभग एक लाख थी। वे सभी राजपूत वंशों में उत्पन्न हुए थे और व्यवसाय करने के कारण वे वैश्यों में प्रसिद्ध हो गये। 520