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आक्रमणकारियों की लूट, उनके अत्याचार अथवा दुर्भिक्ष के समय यह कर कम कर दिया जाता था। यहाँ पर नीचे जो सूची दी गई है, वह प्राचीन ग्रंथों के आधार पर तैयार की गयी है। राज्य के उत्थान के दिनों में जो वाणिज्य कर वसूल होता था, वह इस प्रकार है : जोधपुर 76000 रुपये नागौर 75000 रुपये डीडवाना 10000 रुपये परवतसर 44000 रुपये मेड़ता 11000 रुपये कोलिया 5000 रुपये जालौर 25000 रुपये पाली 75000 रुपये जैसोल और वालोतरा का मेला 41000 रुपये भीनमाल 21000 रुपये साँचोर 6000 रुपये फलोदी 41000 रुपये कुल 430000 रुपये इस कर को वसूल करने के लिए राज्य की तरफ से जो अधिकारी रखे जाते थे, उनको धानी कहा जाता था। एकत्रित कर पर प्रतिशत के हिसाब से धानी लोगों को मासिक वेतन के रूप में मिलता था। यह कर अनाजों पर भी लिया जाता था। राज्य में जो चीजें वाहर से आती थीं, उन पर भी कर लगता था। जो अनाज राज्य से बाहर जाता था, उस पर भी कर वसूल किया जाता था। वाणिज्य कर और भूमि की मालगुजारी पहले की अपेक्षा इधर बहुत दिनों से कम होती हुई चली आ रही है। नमक के द्वारा होने वाली आमदनी भी पहले से बहुत घट गयी है। राज्य के अच्छे दिनों में नमक के द्वारा मारवाड़ में जो आमदनी होती थी और जो राज्य के पुराने लेखों के आधार पर तैयार की गयी है, वह इस प्रकार है : पचपदरा 200000 रुपये फलोदी 100000 रुपये डीडवाना 115000 रुपये साँभर 200000 रुपये नाँवा 100000 रुपये कुल 715000 रुपये इस विभाग के कार्य में कितने ही हजार श्रमजीवी मनुष्य और वैल काम करते हैं। वे श्रमजीवी वनजारा नाम की जाति के होते हैं। जो नमक तैयार होता है, उसका ले जाने के लिए बहुत बड़ी संख्या में वैलों की जरूरत होती है। इसलिए जो बैल नमक ले जाने का कार्य करते हैं, उनकी संख्या लाखों में पहुँच जाती है। सिंधु नदी के तटवर्ती ग्रामों और नगरों से लेकर गंगा जी के समीपवर्ती स्थानों तक इस देश में सर्वत्र यह नमक जाता है। 525