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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४७८

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किसानों की भूमि की पैदावार की निगरानी राज्य के कर्मचारियों के द्वारा होती थी और उन कर्मचारियों का वेतन किसानों से वसूल किया जाता था। इसके लिए प्रत्येक कृषक को दस मन अनाज पर दो रुपये देने पड़ते थे। इस प्रकार कृषकों से वसूल करके जो रूपये एकत्रित होते थे उसमें निगरानी करने वाले कर्मचारियों और कृषकों से राजा के हिस्से का अनाज वसूल करने वालों का वेतन चुकाया जाता था। इसके बाद जो रुपये बचते थे वे ग्राम के पटैल अर्थात् राज्य की तरफ से भूमि के अधिकारी के हिस्से में चले जाते थे, उसमें पटवारी का भी भाग रहता था। राजा के घोड़ों और गायों आदि पशुओं के लिए प्रत्येक कृषक से एक-एक गाड़ी भूसा और ज्वार लिया जाता था। परन्तु. अब उसके बदले में प्रत्येक कृषक से एक-एक रुपया लिया जाता है। दुर्भिक्ष पड़ने के वर्ष में इस रुपये के स्थान पर करबी ली जाती है। पटवारी और पटेल को कृषकों और राजा-दोनों के हिस्सों से अनाज दिये जाने का नियम था। इसके लिए अस्सी भागों में एक भाग पटवारी और पटेल का हो जाता था। इस प्रकार के बहुत-से नियम जो प्राचीन काल से अब तक इस देश में चले आ रहे थे, उनमें कुछ तो ज्यों के त्यों और कुछ परिवर्तन के साथ आज भी राजस्थान में चलते हैं और वही मारवाड़ में भी लागू हैं। अंगकर-मारवाड़ में जितने कर प्रचलित हैं, उनमें एक अंगकर भी है। इसका अर्थ यह है कि राज्य के निवासियों की संख्या पर एक रुपया प्रत्येक प्राणी के हिसाब से जो कर लिया जाता है, वह अंगकर कहलाता है। घासमारी कर-यह कर राज्य के पशुओं के ऊपर लगाया जाता है। इस कर को. घासमारी कर कहते हैं। प्रत्येक बकरी और भैंस पर एक आना, प्रत्येक भैंसे पर आठ आने और प्रत्येक ऊँट पर तीन रुपये के हिसाब से कर वसूल किया जाता है । किवाड़ी कर- इस कर को द्वार कर भी कहा जा सकता है। लेकिन यह कर किवाड़ी कर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा विजय सिंह ने इस कर को प्रचलित किया था। उसके शासन के अंतिम दिनों में सभी सामन्त विद्रोही हो गये थे और वे पाली में एकत्रित होकर राजा को सिंहासन से उतारने के लिये तैयारी कर रहे थे। विजय सिंह ने वहाँ पहुँचकर उनको अपने अनुकूल बनाने की चेष्ठा की थी। परन्तु कोई परिणाम न निकला। भीमसिंह ने सिंहासन पर बैठकर विजय सिंह के आने का रास्ता बंद कर दिया था। उस समय विजय सिंह के सामने भयानक कठिनाई पैदा हो गई थी। उस समय विजय सिंह ने एक सेना का संगठन किया और उसके खर्च के लिए उसने प्रत्येक घर से तीन रुपये वसूल किये। राजा विजय सिंह ने अपनी विपद के समय यह कर वसूल किया था। परन्तु वह स्थायी रूप से प्रचलित हो गया। कुछ समय के बाद जब राज्य में राजा मानसिंह के विरुद्ध विद्रोह पैदा हुआ और पठानों ने राजा की भूमि पर अधिकार कर लिया तो उस समय मानसिंह ने तीन रुपये के स्थान पर दस रुपये वसूल किये। इस कर के वसूल करने का तरीका यह रखा गया कि प्रत्येक नगर और ग्राम के घरों की गणना करके एक सूची तैयार की गयी और उस सूची में प्रत्येक घर की आर्थिक अवस्था का विवरण दिया गया। उस आर्थिक अवस्था के अनुसार कम अधिक प्रत्येक घर से कर वसूल किया गया। गरीब घर से दो रुपये और सम्पन्न घर से बीस रुपये वसूल किये गये। वाणिज्य कर- मारवाड़ में वाणिज्य पर जो कर वसूल किया जाता था, उसकी सूची नीचे दी जाती है। यह कर व्यवसाय की अवस्था के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था। 524