पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४८१

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इस वैतनिक सेना के अतिरिक्त मारवाड़ में योद्धाओं का एक दूसरा दल भी था। उसका नाम था विष्णु स्वामी दल । कायमदास उस दल का सेनापति था। उस दल में सात सौ पैदल थे, तीन सौ अश्वारोही सैनिक थे और वहुत-से उसके सैनिक धनुर्धारी थे। ये धनुर्धारी धनुष वाण लेकर शत्रुओं के साथ युद्ध करते थे। यूरोप में वारूद का आविष्कार होने के अर्ध शताब्दी पूर्व भारतवर्ष के लोग धनुष-बाण के द्वारा युद्ध करने में बहुत होशियार और शूरवीर होते थे। इस वैतनिक सेना के पहले राज्य में केवल राठौरों की सेना थी और वे राठौर युद्ध करने में बड़े वहादुर समझे जाते थे। परन्तु राजा मानसिंह के साथ राज्य के सामन्तों का जव विद्रोह पैदा हुआ था उस समय मानसिंह को सामन्तों की सेनाओं का विश्वास न रह गया था। उस दशा में राजा मानसिंह राज्य के सामन्तों का दमन करना चाहता था। इन दिनों में राज्य का नैतिक जीवन बहुत क्षीण हो गया था। लोग अपने कर्तव्यों का ज्ञान भूल गये थे और कर्त्तव्य के अभाव में मारवाड़ के राठौर सभी प्रकार अपना विनाश स्वयं कर रहे थे। उन विद्रोह के दिनों में यह वैतनिक सेना राज्य में रखी गयी थी। उस समय के बाद राज्य का नैतिक बल भयानक रूप से नष्ट हुआ था। यह दशा लगातार बढ़ी। उन दिनों में मेवाड़ के प्रधान सामन्तों की संख्या सोलह थी, जयपुर के सामन्तों की संख्या वारह थी। मारवाड़ में प्रथम श्रेणी के सामन्त आठ थे। उनके अतिरिक्त दूसरी श्रेणी के सामन्तों की संख्या सोलह थी। इस राज्य के सामन्तों की सूची उनके पूरे विवरण के साथ नीचे दी जाती है। प्रथम श्रेणी के सामन्त स्थान आमदनी विवरण अउवा 100000 मारवाड़ का प्रधानमंत्री। 50000 नाम वंश केशरी सिंह | चम्पावत वख्तावरसिंह कम्पावत सालिम सिंह | चम्पावत सुरतान सिंह | उदावत मेड़तिया अजित सिंह | मेड़तिया 100000 अधिक शक्तिशाली। आसोप पोकरण नीमाज रियाँ घाणेराव 50000 25000 50000 करमसोत खोवंसर अधिक साहसी और वीर। पहले यह मेवाड़ का सामन्त था। इसका स्थान पहले एक वड़ा नगर था। यह दूसरे राज्य का निवासी था। 40000 भाटी खेजड़ला 25000 527