गोदारा के जाटों को अधिकार में ले लेने के बाद बीका ने जोहिया राज्य को जीतकर अधिकार में करने का इरादा किया। जोहिया के साथ जाटों की पुरानी शत्रुता थी। इसलिए वीका के इस प्रकार इरादा करने पर जोहिया के विरुद्ध युद्ध करने के लिए गोदारा के जाट तैयार हो गये। बीका राठौरों और जाटों की प्रवल सेना को लेकर रवाना हुआ और उसने जोहिया पर आक्रमण किया। भारत की मरुभूमि के उत्तरी भाग में सतलज नदी तक जोहिया राज्य फैला हुआ था और उस राज्य में ग्यारह सौ नगर और ग्राम थे। यद्यपि उसके वाद उस राज्य के विस्तार में बहुत कमी हो गयी और तीन सौ वर्ष के पहले ही जोहिया का नाम भी लोप हो गया। जोहिया का राजा शेरसिंह मरुपाल नामक स्थान में रहा करता था। बीका के आक्रमण करने पर शेरसिंह ने बड़ी तेजी के साथ युद्ध की तैयारी की और अपनी सेना को लेकर उसने वीका का सामना किया। मरुभूमि के अनेक युद्धों में वीका ने सहज ही सफलता प्राप्त की थी, परन्तु जोहिया के युद्ध में शेरसिंह के साथ जो भयानक युद्ध हुआ, उसमें विजय प्राप्त करना बीका को बहुत कठिन दिखायी देने लगा। विजय की प्राप्ति से निराश होकर बीका ने षड़यन्त्रों का आश्रय लिया और विश्वासघात के द्वारा शेरसिंह को मरवा दिया। इसके बाद वीका ने मरुपाल पर अधिकार कर लिया। शेरसिंह के मारे जाने के बाद जोहिया के लोगों ने विवश होकर बीका की अधीनता स्वीकार कर ली। जोहिया को जीत कर अपनी विजयी सेना के साथ बीका पश्चिम की तरफ रवाना हुआ। भाटी लोगों के राजा ने वहुत पहले जाटों के बागर नामक नगर को छीन कर अपने अधिकार में कर लिया था। इसलिए बीका ने सबसे पहले जाटों के बागर नगर को अपने अधिकार में कर लिया और वहाँ पर अपनी राजधानी का निर्माण करने का उसने इरादा किया। वागर नगर का अधिकारी एक जाट था, जिसका नाम नेरा था। इसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। वीका ने नेरा से बागर नगर माँगकर 15 मई, सन् 1489 को राजधानी का निर्माण करके उसका नाम बीकानेर रखा। वीका अपने चाचा कांधल के साथ मन्डोर से रवाना हुआ था। मरुभूमि में तीस वर्ष तक रहकर और वहाँ के राज्यों को अपने अधिकार में करके उसने बीकानेर राज्य की प्रतिष्ठा की। इसके बाद काँधल बीका को बीकानेर में छोड़ कर उत्तर की तरफ रवाना हुआ। उसके साथ राठौरों की एक सेना थी। उस तरफ जाकर काँधल ने सिवाग वेनीवाल और सारण नामक जाटों के वंशों को पराजित करके अपनी शक्तियाँ मजबूत बना ली। काँधल के वंशज अव तक बीकानेर के उत्तरी भाग में पाये जाते हैं और वे अव काँधलोत राठौरों के नाम से विख्यात हैं। काँधल ने जिन तीन राज्यों को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया था, वे बहुत दिनों तक बीकानेर राज्य में शामिल रहे। परन्तु उसके बाद काँधल के वंशज काँधलोत राठौरों ने बीकानेर के राजा को अपना राजा नहीं माना और न बीकानेर की अधीनता स्वीकार की। उनका कहना था कि काँधल ने राज्यों को जीतकर उन पर अधिकार किया था और हम काँधल के वंशज हैं। हमारे पूर्वज काँधल की सहायता से बीकानेर-राज्य की स्थापना हुई थी, इस 537
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