पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/५०४

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. 1 सूरतसिंह अपने खजाने को भरने के लिए एक तरफ प्रजा से उसके कष्टों को भूलकर लगातार कर वसूल करता था और दूसरी तरफ इस प्रकार के पाप से मुक्ति पाने के लिए वह ब्राह्मणों के बताये हुए विभिन्न प्रकार के दान करता था। वह स्वभावतः अत्याचारी और निष्ठुर .. था। राज्य के अनेक सामन्तों ने अनेक कठिन अवसरों पर उसकी सहायता की थी। परन्तु उसने उनके उन उपकारों को भुला दिया और उन सामन्तों का विनाश किया। बीकानेर राज्य के प्रधान सामन्त सीधमुख के नाहर सिंह, गुन्दाइल के गुमानसिंह और ज्ञानसिंह भी उसके द्वारा इसी प्रकार मारे गये। सूरत सिंह ने चूरू पर तीसरी बार आक्रमण करके वहाँ के सामन्तों को, जो विद्रोही हो रहे थे, अनुकूल बना लिया। राजा सूरतसिंह के अप्रिय और कठोर शासन से बीकानेर राज्य को अनेक प्रकार की क्षति पहुँची, वहाँ की आर्थिक दशा खराब हो गयी और जनसंख्या में भी बहुत कमी आ गयी। राज्य के उत्तरी भाग के सामन्तों ने उसकी अधीनता को मन्जूर न किया और भाटी लोगों की लूटमार बीकानेर के जाटों और किसानों पर धीरे-धीरे बढ़ने लगी। इससे भयभीत होकर राज्य के जाटों और किसानों ने भागकर अपने प्राणों की रक्षा करने का विचार किया। बहुत से जाट, जो खेती का काम करते थे, राज्य से भाग गये और ईस्ट इण्डिया कम्पनी अधिकृत हाँसी और हरियाणा नामक स्थानों में जाकर रहने लगे। वहाँ पर उनको बड़ी शांति मिली। उन्हीं दिनों में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बहादुर खाँ के राज्य के कई नगरों पर अधिकार कर लिया। उन नगरों में रहने वाले लूट-मार करने के अधिक अभ्यासी थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार में आ जाने के बाद वहाँ के लोग लूट-मार करके बीकानेर को अधिक हानि पहुँचाने लगे। बीकानेर के राजा की तरफ से जब इन लुटेरों को रोकने का कोई प्रबन्ध न हुआ तो राज्य के जाटों ने अपनी रक्षा करने के लिए अपनी तैयारी की। उनके प्रत्येक ग्राम में मिट्टी का एक बहुत ऊँचा टीला तैयार किया गया और उस टीले पर एक पहरेदार रखा गया। वह पहरेदार जब लुटेरों को आता हुआ देखता तो वह अपने ऊँचे टीले पर से रखा हुआ ढोल बड़े जोर से बजाता, उसको सुन कर ग्राम के सभी लोग लुटेरों से सावधान हो जाते। इस प्रकार का ढोल बजनें पर कई ग्रामों के जाट एकत्रित होकर उन लुटेरों का सामना करते और उन्हें मार कर भगा देते। उनका सामना करने के लिए सभी जाटों के पास भाले थे और अपनी रक्षा के लिए वे ढालें भी रखते थे। बीदावाटी बीकानेर राज्य का एक प्रसिद्ध भाग था। उसमें बीदा के वंशधर रहा करते थे। पहले यह लिखा जा चुका है कि मारवाड़ के राज्य से बीका के निकलने से पहले उसका भाई वीदा अपनी प्राचीन राजधानी मंदोर से सेना के साथ निकला था। उसने सबसे पहले 'मेवाड़ के गोडवाड राज्य पर आक्रमण किया। वहाँ पर राणा की शक्तिशाली सेना उसके साथ युद्ध करने के लिए आ गयी। इसलिए भयभीत होकर वह उस स्थान से उत्तर की तरफ चला गया और मोहिल के एक नगर में पहुँचकर उसने मुकाम किया। कुछ लोगों की धारणा है कि मोहिल वंश यदुवंशी राजपूतों की एक शाखा है और कुछ लोगों का कहना है कि मोहिलों की एक स्वतंत्र जाति है। जो भी हो, मोहिल लोगों के राजा की पदवी ठाकुर थी और वह एक सौ चालीस ग्रामों तथा नगरों पर शासन करता था। वहाँ के संगठित मोहिलों को पराजित करने का साहस - 550