अध्याय-47 बीकानेर की जाट एवं अन्य जातियाँ योरोप के लोग बीकानेर की बहुत कम जानकारी रखते थे। वे इसे पूर्ण रूप से . मरुभूमि समझते थे। राठौर राजपूतों के द्वारा आज से तीन सौ वर्ष पहले इस राज्य की प्रतिष्ठा. हुई थी। उस समय इसकी जैसी हालत थी, वह अब नहीं रह गयी। पहले की अपेक्षा यह राज्य बहुत अवनत हो गया है। उन दिनों में बीकानेर राज्य की आबादी बहुत घनी थी और दूसरी बातों में भी यह राज्य उन्नत अवस्था में था। परन्तु उसकी वे अवस्थायें अब एक भी नहीं रह गयीं। इस राज्य की प्राकृतिक अवस्था में बहुत परिवर्तन हो गया है। इसकी उपजाऊ भूमि में बालू की अधिकता हो गयी है। फिर भी यहाँ पर खेती के द्वारा जो अनाज पैदा होता है, उससे यहाँ के निवासियों को खाने-पीने की कोई कमी नहीं रह सकती। बीकानेर के राजा आवश्यकता पड़ने के समय दस हजार सैनिकों की सेना अपने अधिकार में कर लेते थे और उस सेना के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था राज्य की पैदावार से ही होती थी। भूमि की उस पैदावार में भी कमी हो गई है। लेकिन राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति उसके द्वारा हो सकती है। परन्तु कई कारणों से उस पैदावार का लाभ राज्य के निवासी इन दिनों में नहीं उठा पाते। बीकानेर के इस अभाव के दो प्रमुख कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि शासक की निर्बलता के कारण राज्य में चोरी और डकैती बहुत बढ़ गयी हैं। राज्य के बाहर की जातियाँ प्रायः संगठित होकर इस राज्य के निवासियों पर आक्रमण करती हैं और लोगों के घरों की सम्पत्ति के साथ-साथ उनका अनाज लूटकर ले जाती हैं। इस प्रकार की लूट राज्य में प्रायः होती रहती है, जिससे प्रजा खाने-पीने की चीजों और आर्थिक परिस्थितियों में लगातार गरीब होती जाती है। राज्य की तरफ से उसका कोई प्रबन्ध नहीं हो पाता। प्रजा की बढ़ती हुई आर्थिक निर्बलता का दूसरा कारण राजा का क्रूर शासन है। प्रजा से अनावश्यक कर वसूल किये जाते हैं। इन करों के वसूल करने का राज्य में कोई विधान नहीं है। पुराने करों के अतिरिक्त राजा कभी भी कोई नया कर लगा सकता है और वह कर निर्दयता के साथ वसूल किया जाता है। इन दोनों कारणों से राज्य की आर्थिक परिस्थितियां दिन पर दिन निर्बल होती जाती हैं। एक तरफ खेती की पैदावार कम हो रही है, राज्य का वाणिज्य क्षीण होता जा रहा है और दूसरी तरफ राजा के कर और लुटेरों के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। 552
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