सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राज्य की अधिक भूमि भी है। परन्तु वे वड़ी गरीवी के साथ रहते हैं। विवाह जैसे कार्यों में वे आवश्यकता से अधिक व्यय करते हैं। उनमें आतिथ्य-सत्कार की भावना विशेष रूप से पायी जाती है। मार्ग में चलने वाले यात्रियों को भी बुलाकर भोजन कराने में वे अपना गौरव अनुभव करते हैं। सारस्वत ब्राह्मण- इस राज्य में सारस्वत ब्राह्मणों की अधिक संख्या है। वे गर्व के साथ अव भी कहा करते हैं कि मरुभूमि में जाटों के आने के पहले हमारे पूर्वज यहाँ के राजा थे। वे स्वभावतः परिश्रमशील और शान्तिप्रिय देखे जाते हैं। ये लोग मांस खाते हैं, तम्बाकू का सेवन करते हैं और खेती के साथ-साथ अधिक संख्या में गायें रखते हैं। चारण लोग-बीकानेर में चारण लोगों का सम्मान अधिक होता है। ये लोग अपनी कविताओं में राजपूतों के शौर्य का वर्णन करते हैं। यही कारण है कि राठौर लोग उनकी कविताओं को सुनकर बहुत प्रसन्न होते हैं। राज्य की तरफ से जीवन-निर्वाह के लिये इन लोगों को भूमि दी जाती है। जैसलमेर के इतिहास में चारण कवियों का वर्णन विस्तार से किया गया है। प्रत्येक राजपूत परिवार में माली और नाई काम करते हुए देखे जाते हैं। उनकी संख्या प्रत्येक ग्राम में है। यहाँ के राजपूतों के घरों पर प्रायः यही लोग भोजन बनाने का भी काम करते हैं। चूहड़ और थोरी-ये दोनों वास्तव में लुटेरों की जातियाँ हैं। चूहड़ लोग लक्खी जंगल के और थोरी लोग मेवाड़ के रहने वाले हैं। बीकानेर के सामन्तों के यहाँ इन दोनों जातियों के लोग वेतन लेकर काम करते हैं। ये लोग भयानक कार्यों के सामने भी कभी भयभीत नहीं होते। भादराँ के सामन्तों के यहाँ नौकरों में इन दोनों जातियों के लोगों की संख्या अधिक थी। लोगों का विश्वास है कि चूहड़ लोग वहुत विश्वासी होते हैं। इसलिये सीमा और नगर की रक्षा का भार प्रायः उनके हाथों में दिया जाता है। शवदाह के समय ये लोग एक-एक आना सभी से अपनी दस्तूरी लेते हैं। इससे जाहिर होता है कि इस प्रकार दस्तूरी लेने की प्रथा प्राचीन- काल में उनके पूर्वजों में थी। राजपूत-इस राज्य में अनेक परिवर्तन होने के बाद भी बीकानेर के राठौरों की वीरता में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। भारत की अन्य शूरवीर जातियों में इन राठौरों का स्थान अत्यन्त गौरवपूर्ण माना जाता है। मारवाड़, आमेर और मेवाड़ के राजपूतों की तरह बीकानेर के राठौरों पर मराठा और पठान अत्याचार नहीं कर सके। लेकिन उनको अपने ही राज्य की क्रूरता से अत्याचारों को अधिक सहना पड़ा है। राठौर राजपूत खाने-पीने के सम्बन्ध में बहुत पुराने विचारों के पक्षपाती नहीं हैं। वे लोग जिसके हाथ का पानी पीते हैं, उसके हाथ का भोजन भी करते हैं। ये लोग जन्म से ही साहसी,धैर्यशील, सरल स्वभाव के और शूरवीर होते हैं। अफीम, गाँजा और दूसरी मादक चीजों का सेवन करने के कारण इन लोगों ने अपनी शारीरिक शक्तियों का क्षय किया है। प्राकृतिक अवस्था-कुछ स्थानों को छोड़कर राज्य के लगभग सभी स्थानों की भूमि में वालू अधिक पायी जाती है-कहीं कम और कहीं अधिक। पूर्व से लेकर पश्चिमी सीमा तक . 555