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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/५१०

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के सभी ग्रामों और नगरों की भूमि रेतीली है। उत्तरी और पूर्वी भाग में राजगढ़ से नोहर और रावतसर तक की मिट्टी उत्तम श्रेणी की पायी जाती है। उस मिट्टी का रंग काला है। कहीं-कहीं उसमें रेत का अंश भी देखा जाता है। यह मिट्टी खेती के लिये उपयोगी है। इसलिये इस भूमि में गेहूँ, चना और चावल की अधिक पैदावार होती है। भटनेर से गारा के नजदीक तक की मिट्टी भी अच्छी पायी जाती है। मोहिलों के ग्रामों और नगरों की भूमि अधिक रेतीली है। बरसात का पानी वहाँ पर चारों तरफ भर जाता है। जिससे खेतों की आवपाशी करने में बड़ी सहायता मिलती है। मेवाड़ और मारवाड़ की अपेक्षा इस राज्य में जो बाजरा पैदा होता है। वह अधिक अच्छा समझा जाता है। तिल और सोंठ की पैदावार भी यहाँ अच्छी होती है। जो मिट्टी गेहूँ के लिये उपयोगी होती है, उसमें कपास भी अधिक पैदा होती है। एक बार की बोई हुई कपास सात-सात और कभी-कभी दस-दस वर्ष तक बरावर फलती है। कपास के फलों को निकाल लेने के बाद कृपक लोग उनके वृक्षों की शाखाओं का नीचे से आधा भाग काट डालते हैं। उन वृक्षों के नीचे का भाग जो रह जाता है, वह फिर बढ़ता है और पूरे आकार में पहुँचकर फैलता है। बीकानेर में रूई की पैदावार अधिक होती है। इस राज्य में शाक-सब्जी भी अधिक पैदा होती है। यहाँ ज्वार, कचरी, ककड़ी और बड़े-बड़े तरबूज पैदा होते हैं। जल की कम वृष्टि का प्रभाव इन चीजों की पैदावार में नहीं पड़ता। सूखे तरबूजों का आटा स्वास्थ्य के लिये उपयोगी माना जाता है। भारत के अन्य प्रान्तों की अपेक्षा बीकानेर के तरबूज स्वादिष्ट और उत्तम माने जाते हैं। इस राज्य की खेती वर्षा पर निर्भर है। यहाँ पर दुर्भिक्ष का भय हरदम बना रहता है। इसलिये यहाँ के निवासी यथा सम्भव खाने के पदार्थों को अपने यहाँ संग्रह करके रखते हैं। ऐसे अवसरों पर गरीब लोग प्रायः भुरुट, बूट, हिरारु आदि के फलों को सुखाकर और उनका आटा बनाकर बाजरे के आटे के साथ मिलाकर खाते हैं। छोटी श्रेणी के लोग बनवेर, खैर और किरीट आदि फलों का अपने यहाँ संग्रह करते हैं। कुछ और भी ऐसी चीजें हैं जो एकत्रित करके रखी जाती हैं और दूसरे अनाजों के अभावों में वे खाने में प्रयोग की जाती है। यहाँ की रेतीली भूमि में बड़े वृक्ष नहीं पाये जाते । राज्य के प्रमुख स्थानों में आम की तरह को वृक्षों के लगाने की कोशिश की जाती है। परन्तु बबूल, पीलू और जाल नाम के छोटे-छोटे वृक्ष यहाँ अधिक पैदा होते हैं। सेटुडा नाम का एक वृक्ष यहाँ पाया जाता है। उसकी ऊँचाई लगभग बीस फुट की होती है। नीम के वृक्ष भी यहाँ पाये जाते हैं। सक नाम का वृक्ष यहाँ अधिक उपयोगी समझा जाता है। लोग कुए के चारों ओर उसका घेरा बना देते हैं जिससे कुए में रेत न जा सके। बीकानेर राज्य में आक के वृक्ष बहुत पाये जाते हैं। वे बड़े और मजबूत भी होते हैं, उनकी जड़ों से जो रस्सियाँ बनायी जाती हैं, वे बड़े काम की और मजबूत साबित होती है, और वे पूँज की रस्सियों से अच्छी समझी जाती हैं। बीदावाटी में सन और पूँज भी पैदा होती है। खेती के यन्त्र-यहाँ पर हल के द्वारा खेती होती है। बैलों और ऊँटों के द्वारा हल जोते जाते हैं। दो बैलों अथवा ऊँटों से हल माली लोग उस दशा में चलाते हैं, जब मिट्टी अधिक कड़ी होती है। 556