के साथ भयानक अत्याचार करते थे और मनमाना धन वसूल करते थे। राजा सूरतसिंह के समय इस कर की आमदनी दो गुनी हो गयी थी। दण्ड और खुशहाली-इन दोनों नामों पर भी कर वसूल किये जाते थे। अपराधियों से जो जुर्माना लिया जाता था, वह दण्ड कर कहलाता था और आवश्यकता पड़ने पर प्रजा से जो कर माँग कर वसूल किया जाता था, उसे खुशहाली कर कहा जाता था। यह कर सामन्तों, व्यवसायियों और सम्पत्तिशालियों से लेकर साधारण प्रजा तक से वसूल किया जाता था। दण्ड कर वसूल करने के लिये राज्य की तरफ से चौदह कर्मचारी थे। ये कर्मचारी राज्य के प्रमुख नगरों में रहा करते थे। अपराधी को जो दण्ड दिया जाता था, उसका आदेश राज्य के यही कर्मचारी करते थे और जुर्माना करने के बाद यही लोग उसको वसूल भी करते थे। अपराधियों को दण्ड देने के लिए कोई विधान न था। प्रत्येक कर्मचारी, जो राज्य की तरफ से अपराधों का निर्णय करने के लिये नियुक्त होता था, अपनी इच्छानुसार अपराधी को दण्ड की आज्ञा देता था। यह न्यायोचित न था। इसलिये गन्धोली के सामन्तों ने राज्य के इन कर्मचारियों का विरोध किया और उन्हें अपने नगर से निकाल दिया। राजा सूरतसिंह ने भटनेर पर विजय प्राप्त करके युद्ध के खर्च के लिये खुशहाली कर के नाम पर राज्य के प्रत्येक परिवार से दस रुपये वसूल करने के लिये आदेश दिया और ये रुपये कठोर अत्याचारों के साथ प्रजा से वसूल किये गये थे। बीकानेर में राजा की तरफ से इस प्रकार के जो कर लगते थे और जिनका प्रचार अब तक है, वे खुशहाली कर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस नाम से तो जाहिर यह होता है कि इस कर के रुपये प्रजा को खुश करके वसूल किये जाते हैं। इसीलिये इस कर का नाम खुशहाली कर है। परन्तु किस प्रकार के अत्याचारों के साथ राज्य के कर्मचारी प्रजा से इस कर के रुपये वसूल करते हैं, इसका अनुभव राज्य की उस प्रजा को ही है, जिसे राज्य के अत्याचारों का सामना करना पड़ता है। सामन्तों की सेनायें-राजा के व्यवहार और चरित्र पर सामन्तों की सेनायें निर्भर होती हैं। यदि सूरतसिंह में प्रजा की भक्ति का भाव होता और उसने किसी भी विपद के समय राज्य और प्रजा की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझा होता तो बीकानेर के सामन्त किसी भी समय बाहरी शक्ति के आक्रमण करने पर दस हजार राजपूतों की सेना लेकर राजा की सहायता कर सकते थे और सामन्तों के द्वारा आने वाले राजपूतों की सेना में वारह सौ अश्वारोही राजपूत । होते। यह वात जरूर है कि इन दिनों में राज्य की राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियाँ बहुत निर्बल हो गयी थीं। इसलिये इन दिनों में सामन्तों के द्वारा आने वाली राजपूत सेना की उतनी सम्भावना नहीं हो सकती। इन दिनों में राजा के अधिकार में जो सेना है, उसमें एक सेना, जो विदेशी कही जाती है, पाँच सौ पैदल, ढाई सौ अश्वारोही और पाँच वंदूकें रखती है। इस सेना का सेनापति भी बीकानेर राज्य की राजधानी के दुर्ग की रक्षा के लिये एक राजपूत सेना वरावर रखता है। उस सेना को वेतन देने के लिए पच्चीस ग्राम राज्य की तरफ से अलग कर दिये . गये हैं। 561
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