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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/६३

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अध्याय-8 राजस्थान में जागीरदारी प्रथा -1 1 राजस्थान में किसी भी हिस्से में दीवानी और फौजदारी के मामलों का कोई विधान न था, निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता। परन्तु इस समय यहाँ पर इस प्रकार का कोई विधान नहीं है, यह बात निश्चित है। यह बात जरूर है कि इन राजपूत राज्यों में फौजी कानून इस प्रकार काम करता है कि उसके द्वारा यहाँ पर शासन की पूरी व्यवस्था होती जाती है। राजस्थान की जागीरदारी प्रथा, प्राचीन यूरोप की इस प्रथा के बिल्कुल समान थी। परन्तु उसके बाद वहाँ की यह प्रथा ऐसी बिगड़ गयी कि उसके साथ राजस्थान की जागीरदारी प्रथा की तुलना करने का मैं साहस नहीं कर सकता। राजस्थान की इस प्रथा के सम्बंध में मैं जो कुछ इन पृष्ठों में लिखने जा रहा हूँ, उसको समझाने, जानने, अध्ययन और अनुशीलन करने में मैंने अपना बहुत समय व्यतीत किया है और बहुत परिश्रम के बाद मैंने जो कुछ पाया है उसको यहाँ पर लिखने का मैं प्रयास करूँगा । इस प्रथा के सम्बंध में सही बातों को जानने की मैंने कोशिश की है, परन्तु लिखी हुई सामग्री मुझे बहुत कम मिली है। फिर जो लोग इस विषय के जानकार थे, मैंने पूरी तौर पर उनसे लाभ उठाने की कोशिश की है और उन लोगों ने भी मेरी सहायता की है। इस प्रकार मुझे जो सामग्री मिल सकी है उससे मेरा अनुमान है कि राजस्थान की यह प्रथा प्राचीन काल में निश्चित रूप से अत्यंत परिपूर्ण और उपयोगी रही होगी। अंग्रेजों के साथ राजस्थान के राजाओं का सम्पर्क स्थापित होने के पहले, इस देश की ऐतिहासिक और भौगोलिक जानकारी बहुत कम लोगों को थी। उन दिनों में केवल मनोरंजन के लिये मैं यहाँ के राज्यों में घूमा करता था और उस समय मुझे यहाँ के इतिहास और भूगोल के सम्बंध में जो जानकारी होती थी, उसे मैं लिख कर अपनी सरकार के पास भेज देता था। यूरोप और राजस्थान की इन प्रथाओं को तुलनात्मक दृष्टि से देखने और समझने के लिये मेरे पास काफी अच्छे साधन थे। जागीरदारी प्रथा के सम्बंध में मांगटेस्की, ह्यूम, मिलर और गिबन आदि प्रसिद्ध इतिहासकारों के लिखे हुये ग्रंथों का मैंने अध्ययन किया और दोनों देशों की प्रथाओं की तुलना करते हुये अपना निष्कर्ष निकालने की कोशिश की। इन्हीं दिनों में प्रसिद्ध इतिहासकार हालम का इस विषय पर लिखा हुआ ग्रंथ मुझे पढ़ने को मिला। इसमें जागीरदारी प्रथा के अनेक छिपे हुए उन पहलुओं पर विद्वान लेखक ने प्रकाश डाला था, जो उस समय तक स्पष्ट न हुए थे। मैंने इतिहासकार हालम के निर्णय के साथ राजपूतों की इस प्रथा का मिलान किया। मेरा विश्वास है कि जो लोग यहाँ की इस प्रथा को यूरोप से अलग समझते थे, उनको संतोष मिलेगा। मैं अनुमान के खतरों से 63