। मेवाड़ के मंत्री लोग वेतन के स्थान पर भूमि अथवा इलाका अधिक सम्मानपूर्ण समझते थे। यूरोप के अनेक देशों में भी उस युग में इसी प्रकार के भूप्रबन्ध पाये जाते थे फ्रांस के राजा सार्लमन के यहाँ राज कर्मचारियों की अलग-अलग श्रेणियाँ बनी थीं। उनमें छोटे और बड़े सभी प्रकार के कर्मचारी थे। मंत्रियों और अध्यक्ष लोगों की भी श्रेणियाँ थी। राजपूत राज्यों में भी हमको बहुत कुछ उसी प्रकार की बातें देखने को मिलती हैं। मेवाड़ राज्य में वेतन के स्थान पर भूमि पाने वाले सभी प्रकार के लोग देखे जाते हैं। प्रासाद निर्माता, चित्रकार, चिकित्सक, दृत और मंत्री लोग भूमि पाने के अधिकारी माने जाते हैं। राज्य के कर्मचारियों में उनके वंश की श्रेष्ठता को अधिक महत्त्व दिया जाता है। राज्य के कार्यों में आमतौर पर पैतृक अधिकार चलता है। इसका अर्थ यह है कि जिस पद पर जो आदमी काम करता है, उस पद पर उसी का पुत्र, प्रपौत्र और उत्तराधिकारी काम कर सकता है। ऐसे लोगों को राज्य की तरफ से उपाधि भी दी जाती है। यदि किसी कारण से किसी को दी गई भूमि वापस ले ली जाती है तो जिसकी भूमि वापस ली जाती है, उसे अपने अधिकार के लिये लड़ने का मौका मिलता है। भूमि अथवा गुजारा पाये हुए राज कर्मचारियों को राज्य के प्रति अपना कर्तव्य पालन करना पड़ता है। किसी भी अवस्था में वे अपने राजा के भक्त होते हैं और राज्य के प्रति उनको शुभचिंतक होकर रहना पड़ता है। कर्त्तव्यपरायणता के विरुद्ध कोई काम करने पर अथवा अपने आचरणों से राज्य के प्रति विश्वासघात का परिचय देने पर उसे जो भूमि अथवा इलाका दिया गया था, वह वापस ले लिया जाता है। यदि इसके सम्बंध में कोई अपील करता है तो उस पर फिर से निर्णय किया जाता है। मेवाड़ राज्य की व्यवस्था सभी प्रकार से सुरक्षित रखने की चेष्टा की गई है। राज्य की दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर लड़ाकू और लुटेरे भील, मीणा और मीणा जाति के लोग रहते हैं। राज्य के चारों तरफ सामन्तों का शासन है। राज्य की मध्यवर्ती भूमि खालसा है। यह भूमि अधिक उपजाऊ है। इस प्रकार की व्यवस्था के द्वारा मेवाड़ राज्य साधारण परिस्थितियों में सुरक्षित समझा जाता है। मेवाड़ में सामन्तों को जितनी भूमि दी गई है,खालसा भूमि उसकी चौथाई भी नहीं है । इस खालसा भूमि की आमदनी से ही राज्य का कार्य चलता है । किसी उत्तम कार्य के लिये इसी आय से राणा, लोगों को पारितोषिक देता है । राजधानी के निकट किसी भी सामन्त को भूमि नहीं दी जाती । इस नियम को राणा भीमसिंह ने पहले से भी अधिक कठोर बना दिया है। सामन्तों को राज्य की भूमि का जो इलाका दिया जाता है, उसके बदले में उनको राज्य की रक्षा के लिए शत्रुओं से युद्ध करना पड़ता है। मेवाड़ के सामन्तों के सामने, उनके सीमा पर होने के कारण, एक न एक लड़ाई बनी ही रहती है। कभी पहाड़ों पर रहने वाली जंगली जातियों के उपद्रव होते हैं, तो उस दशा में सामन्तों को उनका सामना करना पड़ता है और कभी आक्रमणकारियों के आने पर उनके साथ उनको संग्राम करना पड़ता | इस प्रकार के जितने भी संघर्ष पैदा होते हैं उनका सामना करने के लिये अपनी सेनाओं के साथ राणा की सहायता के लिए युद्ध स्थल में जाना पड़ता है। शासन के सुभीते के लिए राज्य का विभाजन होता है। राज्य मे बड़े-बड़े जिले होते हैं और प्रत्येक जिले में पचास से लेकर सौ तक ग्राम होते हैं। कहीं-कहीं इन ग्रामों की संख्या और अधिक हो जाती है। सम्पूर्ण राज्य चौरासी भागों में विभाजित किया जाता है। जिन दिनों में जागीरदारी की प्रथा इंगलैंड में थी, उन दिनों में वहाँ पर भी इसी प्रकार का विभाजन होता था। 69
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