मेवाड़ राज्य की रक्षा के लिए बहुत से स्थानों पर सीमा रक्षक सरदार रहा करते हैं। उनके अधिकार में सैनिकों की एक संख्या रहती है। यह संख्या सभी सीमा-रक्षकों की एक-सी नहीं होती । जहाँ जैसी आवश्यकता होती है, वहाँ उतने ही कम और अधिक सैनिक रखे जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर कोई भी सीमा रक्षक सरदार अपने निकटवर्ती सामन्त की सेना को सहायता के लिए बुला सकता है। इन सीमा रक्षकों की नियुक्ति बड़े उत्तरदायित्वों के साथ की जाती है। जो लोग इस कार्य के लिये राज्य के अधिकारियों के पास प्रार्थना पत्र भेजते हैं उनका अंतिम निर्णय राणा के द्वारा होता है। इन रक्षकों के अधिकार में राज्य की पताका राजकीय चिन्ह मानसूचक बाजे व घोषक दूत आदि अनेक चीजें होती हैं। राज्य के जो सामन्त (जागीरदार) ऊँची श्रेणी के होते हैं, साधारण अवस्था में सीमा के संघर्ष में जाकर भाग नहीं लेते । बल्कि अपनी सेना के किसी अधिकारी के नेतृत्व में अपनी सेना भेज देते हैं। राज्य के विभाजन में प्रत्येक जिले में मामले-मुकदमें का निर्णय करने के लिए एक दीवानी का अधिकारी और दूसरा एक सैनिक अधिकारी रहा करता है। इन लोगों का कार्यालय किसी दुर्ग में रहता है और वहीं पर रहकर वे लोग अपना कार्य करते हैं। विभाजित राज्य की सुव्यवस्था उसके सामन्तों (जागीरदारों) के द्वारा होती है। जो सामन्त (जागीरदार) इस प्रकार का कार्य करते हैं, राज्य की तरफ से वे चार श्रेणियों में विभाजित हैं और वे इस प्रकार हैं: पहली श्रेणी - इस श्रेणी में सोलह सामन्त हैं। राज्य की तरफ से मिले हुये इलाकों के द्वारा इन सामन्तों की सालाना आमदनी पचास हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक है। इस श्रेणी के सामन्त राणा के द्वारा आमंत्रित होने पर किसी भी कार्य के समय राजभवन में जाते हैं । वंशों की मर्यादा के अनुसार इस श्रेणी के सामन्तों को राणा के मंत्री होने का पद मिलता है, यह मेवाड़ में बहुत दिनों से चला आ रहा है । दूसरी श्रेणी - इस श्रेणी के सामन्तों की वार्षिक आय पाँच हजार रुपये से लेकर पचास हजार रुपये तक है। इन सामन्तों को नियमित रूप से राजभवन में रहना पड़ता है। इन्हीं सामन्तों में से प्रायः सीमा रक्षक चुने जाते हैं। उनको फौजदार कहते हैं। उनके अधिकार में सैनिकों की एक छोटी सेना रहती है। तीसरी श्रेणी - सामन्तों की यह तीसरी श्रेणी गोल नाम से प्रसिद्ध है। इनकी वार्षिक आय पाँच हजार रुपये होती है। राणा उनमें से किसी को भी उनके कार्यों से प्रसन्न होकर अधिक भूमि देने का अधिकार रखता है। इन सामन्तों को राज्य के जो कार्य करने पड़ते हैं, वे राणा पर निर्भर होते हैं। इन्हीं के द्वारा राणा राज्य की व्यवस्था करता है। प्रत्येक अवस्था में इन सामन्तों को राणा के अधिकार में रहना पड़ता है। यदि ऊँची श्रेणी के सामन्त राणा के साथ विद्रोह करें तो इस श्रेणी के सामन्त उस समय राणा की सहायता करते हैं और विरोधी सामन्तों को विद्रोही समझकर राणा के आदेश के अनुसार उनके साथ युद्ध करते हैं। चौथी श्रेणी राणा के परिवार में उत्पन्न होने वाले राजकुमार एक निश्चित अवस्था तक बाबा कहे जाते हैं। उनके पालन-पोषण के लिए राज्य की तरफ से एक निश्चित भूमि होती है। ये लोग चौथी श्रेणी के सामन्त माने जाते हैं। इस श्रेणी में शाहपुरा और बनेड़ा के सामन्त अधिक शक्तिशाली हैं। इन सामन्तों को राणा के अधीन होकर चलना पड़ता है। राज्य की दीवानी के मामलों का निर्णय करने के लिये जैसा कि ऊपर लिखा गया है-दीवानी का एक अधिकारी रहता है । यह अधिकारी सामन्तों में से ही नियुक्त होता है। । 70
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