पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/८५

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1 नवयुवकों में इसी प्रकार की प्रथा बहुत पहले पायी जाती थी। उनके बालकों को अस्त्रों से विभूषित किया जाता था। मेवाड़ राज्य में नजराना देने की प्रथा बहुत पहले से चली आ रही है। लेकिन राज्य के पतन के दिनों में उसके बहुत से सामन्तों ने नजराना देना बंद कर दिया था। उन दिनों में राणा की शक्तियाँ क्षीण हो गयी थी। राज्य पर बाहरी आक्रमण लगातार हो रहे थे और आक्रमणकारियों के साथ संधि करके राणा ने अपना खजाना खाली कर दिया था। उन्हीं . दिनों में कुछ सामन्तों ने नजराना देना बंद किया। इसके फलस्वरूप वहाँ की मूल प्रणाली में परिवर्तन हो गया और नजराने की प्रथा अनुचित समझी जाने लगी। जागीर का हस्तांतरित होना - जागीरदारी प्रथा में जब किसी सामन्त को राज्य की ओर से एक जागीर मिल जाती है तो उसके हस्तांतरित होने का कोई नियम उसके विधान में नहीं है। अपनी जागीर को सामन्त न तो बेच सकता है और न किसी दूसरे को वह दे सकता है। सामन्त को इस प्रकार का साधारण परिस्थितियों में कोई अधिकार नहीं है। धार्मिक बातों में सामन्त को इसके लिए कुछ अधिकार गये हैं। परन्तु उस अधिकार में भी वह स्वतंत्र नहीं है । उसको राजा की आज्ञा लेनी पड़ती है। यदि राजा आदेश नहीं देता तो धार्मिक मामलों में भी अपने अधिकार को हस्तांतरित करने का उसे कोई हक नहीं होता। देवगढ़ के सामन्त ने राणा की आज्ञा के बिना और अपने सरदारों से बिना परामर्श किये किसी समय अपनी जागीर के अधिकार को दूसरे के नाम कर दिया था। उसके ऐसा करने पर राणा ने उसके अधिकार का सम्पूर्ण इलाका उससे छीन लिया और जब देवगढ़ के सामन्त ने अपने यहाँ पहले की व्यवस्था फिर से कायम कर ली तो राणा की तरफ से उसकी भूमि उसको फिर वापस दे दी गयी। जो लोग खेती का काम करते हैं, वे रुपये देकर राज्य से अपने खेतों का पट्टा लिखा लेते हैं और वे उसके अधिकारी बन जाते हैं। पट्टा हो जाने के बाद राजा केवल उनसे निर्धारित कर वसूल कर सकता है। पुत्रहीन सामन्त के मरने पर उसकी जागीर का अधिकार- जिन सामन्तों को राज्य की तरफ से इलाका मिलता है, जागीरदारी प्रथा के विधान के अनुसार उनका उस पर अधिकार होता है और उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी उसके अधिकारी माने जाते हैं। लेकिन दत्तक पुत्रों का उस पर कोई अधिकार नहीं होता। इसलिए जब कोई सामन्त पुत्रहीन रह कर मरता है तो उसकी भूमि को राणा अपने अधिकार में ले लेता है। मेवाड़ राज्य की यह पुरानी प्रथा है और राणा को अनेक अवसरों पर ऐसा करना पड़ा है। सामन्त के किसी प्रकार अपराध करने पर राणा को उसकी भूमि वापस लेने का अधिकार है। अपराध के अनुसार सामन्त को दंड दिया जाता है और उसके लिए उसके अधिकार की सम्पूर्ण भूमि उससे ले ली जाती है। प्राचीन काल में इसी प्रकार का नियम यूरोप के राज्यों में भी था। मारवाड़ में आजकल लगभग सभी प्रथम श्रेणी के सामन्त अपना राज्य छोड़कर दूसरे राज्यों में निर्वासित देखे जाते हैं। अपने राजा की तरफ से निकाले गये हैं। ईश्वर के राजा ने भी अपने सामन्तों के साथ ऐसा ही किया होता, यदि बम्बई के गवर्नर एलफिन्स्टन ने उसका विरोध न किया होता। जो राजपूत अपने परिश्रम, त्याग और पुरुषार्थ से राज्य का उपकार करते हैं, राणा की तरफ से उनको जीवन भर अधिकार में रखने के लिए राज्य की भूमि दी जाती है। जिस प्रथा के द्वारा मेवाड़ राज्य में ऐसा होता है उसका नाम 'चारुत्तर' है। अर्थात् यह नियम - 85