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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/९४

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केन्द्रीय शक्ति है। उसके और अधीन राजाओं के बीच का एक विधान होता है। उसी विधान के अनुसार राज्य का शासन चलता है। ठीक यही अवस्था राजा और सामन्तों के वीच की है। वे बनेड़ा और शाहपुरा के राजा यद्यपि मेवाड़ के श्रेष्ठ सामन्तों में से थे, परन्तु अन्य सामन्तों की अपेक्षा कितने ही नियमों में स्वतंत्र माने जाते थे। दूसरे सामन्तों की तरह उनको राज्य के वकसी अभिषेक में राणा के दरवार में नियमानुसार आना पड़ता है। ये दोनों राज्य अपने निकटवर्ती जिले में होने वाले राणा के किसी कार्य में भाग लेने के लिए नियमवद्ध हैं। सामन्त शासन प्रणाली के अनुसार जो नियम सामन्तों को पालन करने पड़ते हैं, उनमें से कुछ का पालन वनेड़ा और शाहपुरा के दोनों राजाओं के लिए आवश्यक है। लेकिन इधर बहुत दिनों से दोनों राजा अपने कर्तव्य पालन में वहुत शिथिल पाये जाते हैं। मेवाड़ राज्य की शक्तियाँ वाहरी आक्रमणों के कारण जिस प्रकार शिथिल होती जा रही हैं, उनका प्रभाव राज्य के अन्य सामन्तों के साथ-साथ इन दोनों राज्यों पर भी पड़ है, ऐसा होना स्वाभाविक है। दिल्ली मुगल शासकों की राजधानी है। अजमेर मुगलों की अधीनता में है। वनेड़ा और शाहपुरा अजमेर के निकटवर्ती हैं। इस दशा में मुगलों का प्रभाव इन दोनों राज्यों पर पड़ना स्वाभाविक है । इतने निकट रह कर शक्तिशाली मुगलों के विरुद्ध बना रहना इन दोनों के लिए संभव नहीं था। इस दशा में इन दोनों का खिचाव दिल्ली की तरफ हुआ। वहाँ से इनको राजा की उपाधियाँ मिली। शाहपुरा के राजा ने मुगलों की मेहरवानी का कुछ और भी लाभ उठाया। पट्टा- राणा की ओर से सामन्तों को जो भूमि अथवा जागीर दी जाती है, उसकी लिखा-पढ़ी पट्टे के नाम पर होती है। इसी पट्टे को राणा की सनद के नाम से भी लिखा गया है। यों तो सामन्त शासन-प्रणाली का एक विधान होता है और प्रत्येक सामन्त को राजा के साथ-साथ उस विधान का पालन करना पड़ता है। फिर भी प्रत्येक पट्टे में राणा और सामन्त के बीच निर्धारित होने वाली वातें लिखी जाती हैं। इस शासन-व्यवस्था में सर्वत्र लगभग यही होता है और मेवाड़ राज्य में भी वहुत प्राचीन काल से यही होता चला आया है। राजस्थान के अन्य राज्यों के मुकाबले में मेवाड़ राज्य शासन की नीति में सदा आगे रहा है और इसीलिए राजस्थान में यह राज्य सदा श्रेष्ठ माना गया है। परन्तु बाहरी आक्रमणों के दिनों से मेवाड़ का राजनीतिक पतन आरम्भ हुआ और फिर इस राज्य की परिस्थितियाँ लगातार बिगडती गयी। इसी कमजोरी के फलस्वरूप मेवाड़ के राणा की राजनीतिक नीति निर्बल पड़ गयी। उस निर्बलता में राणा ने अपने आपको शक्तिहीन बनाने का कार्य किया। पतन के इन दिनों में राणा की शक्तियाँ इस योग्य भी न रह गयी कि वे सामन्तों को नियमानुसार चलाने के लिए काफी होती। अभिषेक में नये आने वाले सामन्तों ने उसकी इस निर्वलता का लाभ उठाया। अपनी दुरवस्था में राणा ने मिलने वाले नजरानों पर ही संतोष करना आरंभ किया। उसके इस संतोष का प्रभाव और भी बुरा पड़ा। हुआ यह कि इन दिनों में सामन्तों के जो पट्टे लिखे गये और स्वीकार किये गये, उनमें विधान के अनुसार सभी नियमों की पावंदी नहीं करायी गयी और राणा उतने ही नियमों पर संतुष्ट हो गया। 94 ।