पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/९३

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जव मेवाड़ राज्य पर कोई वाहरी शक्ति आकर आक्रमण करती है तो उसके साथ युद्ध करने के लिए राणा युद्ध की घोषणा करता है। उस घोषणा को सुनते ही प्रत्येक भूमिया राजपूत को अपना घर छोड़कर युद्ध के लिए जाना पड़ता है। इस सैनिक कार्य के लिए राज्य की तरफ से उनको किसी प्रकार का वेतन नहीं दिया जाता। इस दशा में भूमिया राजपूतों का कहना है कि "राणा.को हम लोगों से भूमि का कोई भी कर नहीं लेना चाहिए।” उनका यह भी कहना है कि “कर के नाम पर जो कुछ हम राणा को देते हैं, राणा उसको लेने का अधिकारी नहीं है।" भूमिया राजपूत राज्य की जितनी भूमि पर अधिकार कर लेते हैं, उसके लिए वे लोग राणा से कोई पट्टा मंजूर नहीं करवाते । बिना पट्टे के भूमि के अधिकारी बनने में वे लोग अपना गौरव समझते हैं। अपने अधिकार की भूमि के सम्बंध में भूमिया राजपूत बड़े स्वाभिमान के साथ कहा करते हैं - "यह हमारी भूमि है और हम इसके स्वामी हैं।' प्राचीन काल में भूमिया राजपूत बनने के लिए बड़े-बड़े प्रयत्न करने पड़ते थे और उसके बाद भी अक्सर सफलता नहीं मिलती थी । देवला के राठौर सरदार ने बनेड़ा के राजा से पट्टा मंजूर करा के कुछ ग्रामों पर अधिकार कर लिया था। उस अधिकार के बदले राठौर सरदार राजा को निर्धारित कर दिया करता था। जागीरदारी प्रथा के अनुसार राठौर सरदार को राजा के दरबार में उपस्थित रहना चाहिए। लेकिन इस नियम के पालन में उसने अत्यंत शिथिलता से काम लिया। पट्टे के अनुसार किसी भी युद्ध के समय सरदार को पैंतीस सवार देने चाहिए थे। जब उस प्रकार का समय उपस्थित हुआ तो वह सरदार इस नियम का भी पालन न कर सका । उन दिनों में बनेड़ा का राजा युद्ध में फँसा हुआ था। जब युद्ध समाप्त हुआ तो उसने राठौड़ सरदार को अपने यहाँ बुलाकर कहा "तुम्हारा जो पट्टा स्वीकार किया गया था, उसे तुम लौटा दो।" सरदार ने उस समय कुछ न कहा और वहाँ से लौटकर उसने राजा के पास संदेश भेजा - “सेना, मस्तक और देवला की जागीर एक साथ है। जागीर को मेरे मस्तक से और मस्तक को इस जागीर से अलग नहीं किया जा सकता।" इस अभिमान के कारण राठोड़ सरदार के अधिकार की भूमि छीन ली गयी। सरदार के नियम विरुद्ध कार्यों के कारण उसका पट्टा रद्द कर दिया गया। भूमिया राजपूतों का पद सामन्त शासन-प्रणाली में इतना सम्मानपूर्ण माना जाता है कि उस पद के लिए प्रधान श्रेणी के सामन्त भी चेष्टा किया करते हैं। उसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके लिए कोई पट्टा नहीं होता और सभी सामन्तों में इस प्रकार के अधिकारी को अनेक बाधाओं से मुक्त समझा जाता है। बनेड़ा और शाहपुरा मेवाड़ राज्य में बनेड़ा और शाहपुरा स्वतंत्र रूप के राजा माने जाते हैं। उन दोनों सामन्तों को राजा की उपाधियाँ मिली हैं। ये दोनों राजा, राणा के वंश के हैं। बनेड़ा का राजा जयसिंह के वंश में और शाहपुरा का राजा राणा उदयसिंह के वंश में उत्पन्न हुआ है। इन दोनों राज्यों की एक-सी व्यवस्था है। यदि इन राज्यों का राजा मर जाता है तो उसका उत्तराधिकारी राणा सनद अथवा पट्टा प्राप्त कर लेता हैं नियमानुसार उसका अभिषेक कार्य होता है और राणा धन और बहुमूल्य वस्त्र उसे भेंट में देता है। सामन्त शासन प्रणाली को यहाँ भली-भाँति समझ लेने की आवश्यकता है। जिस प्रकार एक राज्य छोटे और बड़े बहुत-से राजाओं में विभाजित होता है और वे सभी राजा एक प्रधान राजा की अधीनता में कार्य करते हैं। वह प्रधान छोटे-बड़े समस्त राजाओं की के राजा के सामन्त 93