राजपूतों के सगे भाईयों और परिवार के लोगों में जो प्रायः संघर्ष पैदा होते हैं, उनका कारण यही पैतृक अधिकार है। यह अधिकार सुनने में बड़ा अच्छा मालूम होता है। लेकिन इसका परिणाम भयानक होता है। पैतृक अधिकारों ने अधिक संख्या में राजपूतों को न केवल अकर्मण्य बना दिया है, बल्कि वाप-दादाओं और सगे भाइयों का सर्वनाश करने के लिए अनेक अवसरों पर प्रोत्साहन दिया है। इस पैतृक अधिकार के दुष्परिणामों को प्राचीन काल के फ्रांसीसी लोग जानते थे। इसीलिये अपने यहाँ की सामन्त शासन-प्रणाली के विधान में उन लोगों ने इस अधिकार को स्थान नहीं दिया था। वहाँ पर ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसके अनुसार किसी सामन्त की जागीर अथवा भूमि उसके उत्तराधिकारियों में बाँटी जा सके। सामन्त का वड़ा लड़का ही केवल उसका उत्तराधिकारी होता है। उत्तराधिकारियों में जागीर के बाँटने का प्रश्न वहुत भयानक है और न वाँटने की अवस्था में सामन्त के भाइयों और वेटों के लिए क्या होना चाहिए, इसका निर्णय भी आसानी के साथ नहीं किया जा सकता । जागीर में पैतृक अधिकार होने के कारण सामन्त के परिवार का कोई भी एक सदस्य चाहे वह भाई हो अथवा वेटा, सहज ही अपना अधिकार चाहता है। इसी अधिकार के नाम पर फ्रांस में फिरेज का प्रश्न पैदा हुआ था और उस समय वहां के अधिकारियों ने सामन्त के परिवार के सम्मान और जागीर के अविभाजन पर एक निर्णय कर लिया था। इसी प्रकार की व्यवस्था इंगलैंड में प्रथम एडवर्ड के शासन काल में हुई थी। उस समय फ्रांस और इंगलैंड में विभाजन को सीमित वनाकर यह निश्चय कर लिया गया था कि इस निर्णय के विरुद्ध यदि किसी जागीर में कोई काम किया गया तो वह जागीर जब्त कर ली जाएगी। जागीर के विभाजन के सम्बंध में इस प्रकार का नियम होना अत्यंत आवश्यक जो व्यवस्था हो उसका उद्देश्य होना चाहिए कि न तो उत्तराधिकारियों के अधिकारों की अवहेलना की जाये और न जागीर को छिन्न-भिन्न होने दिया जाये। इसके लिए क्या होना चाहिए, यह प्रश्न तो अधिकारियों के निर्णय से सम्बंध रखता है। यदि जागीर का विभाजन सीमित कर दिया जाये तो उसके द्वारा राष्ट्र के हितों की बहुत कुछ रक्षा हो सकती है । जागीर के विभाजन की प्रथा ने इस देश के राजपूतों को मटियामेट कर दिया है। भीषण संघर्षों की उत्पत्ति हुई है और आपस के द्वेष भावों ने भयानक रूप से उनका सर्वनाश किया है। जागीरों के विभाजन के कारण कच्छ और काठियावाड़ में राजपूतों का भयानक पतन हुआ है। उनमें मुकदमेवाजी की वृद्धि हुई है और उसके फलस्वरूप, अपराधों और अत्याचारों की लज्जापूर्ण सृष्टि करके वे अपने सर्वनाश के स्वयं कारण बन गये हैं। जहाँ पर जागीरों का विभाजन सीमित कर दिया गया है, वहाँ पर बहुत लाभ है और उत्तराधिकारियों के साथ-साथ जागीरें सुरक्षित हो गयी हैं। मेवाड़ में जागीरों का विभाजन उत्तराधिकार की प्रथा के कारण कितना अधिक हुआ है और अब भी हो रहा है, उसे लिख सकने में हुम असमर्थ हैं। अपनी खोज में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि जागीरों के विभाजन और लड़कियों के विवाहों में दहेज की प्रथा के कारण राजपूतों में शिशु हत्या की सृष्टि हुई है। - 1. अन्य देशों की तरह इंगलैंड में भी सामन्त शासन-प्रणाली के द्वारा शासन चलता था। सामन्तों को उन्हीं तरीकों से वहाँ की भूमि दी गयी थी, जिन तरीकों से दूसरे देश के राज्यों में । परन्तु इंगलैंड के प्रथम एडवर्ड ने यह नियम बना दिया था कि किसी सामन्त की जागीर उत्तराधिकारियों में वांटी नहीं जा सकती। 97
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