पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/९८

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अध्याय-10 राजस्थान में कर व्यवस्था रखवाली - सामन्त शासन-प्रणाली में पूर्वी और पश्चिमी राज्यों के जो नियम एक दूसरे के साथ बहुत कुछ समानता रखते हैं, उन पर हम इस परिच्छेद में प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे। बढ़ती हुई अशान्ति, असुरक्षा और अराजकता में प्रजा के धन और प्राणों की रक्षा करने के लिए जिस प्रकार के कर को जन्म दिया गया, वह रखवाली के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी प्रकार की अशान्ति और असुरक्षा के दिनों में यूरोप के राज्यों में सैलवामेंटा नाम का कर लगाया गया था। रखवाली का अर्थ रक्षा करना है । यह कर राजस्थान के राज्यों में थोड़ा-बहुत हमेशा रहा है । परन्तु पिछले पचास वर्षों से यह कर भयानक हो उठा है। रक्षा की आवश्यकता होने पर इस कर की सृष्टि हुई। आवश्यकता पड़ने पर संरक्षक खोजे गये अथवा वे अवसर देखकर स्वयं पैदा हो गये। जिन लोगों ने रक्षा करने का कार्य किया, उनको उसका मूल्य अदा किया गया। यह अदायगी कई तरीकों से की गयी। उस रक्षा का मूल्य अधिकतर सम्पत्ति के द्वारा किया गया और कभी-कभी खेतों की पैदावार से उस रक्षा की कीमत चुकाई गयी। अनेक अवसरों पर रक्षा करने वालों ने बिना किसी नियम और व्यवस्था के भूमि पर अधिकार कर लिया और उसका मनमाना लाभ उठाया। जिन लोगों ने रक्षा करने का व्यवसाय आरंभ किया, उनका मुख्य उद्देश्य भूमि पर अधिकार करना रहा। भूमिया सामन्तों की तुलना हम यूरोप के उन सामन्तों के साथ कर चुके हैं, जो किसी प्रकार का कर अपने राजा को न देते थे। वे सामन्त जिस भूमि पर अधिकार पा जाते थे, उसके वे सदा के लिए स्वामी बन जाते थे और उसमें फिर किसी प्रकार का कोई संशोधन और परिवर्तन नहीं होता था। दासत्व- अरक्षित अवस्था में प्रजा ने जिन लोगों का आश्रय ग्रहण किया, उन्होंने प्रजा की रक्षा कर के अपनी रक्षा के मूल्य में प्रजा के भूमिया स्वत्व पर अधिकार करना आरंभ किया। यह पहले लिखा जा चुका है कि राज्य की कुछ भूमि, जो सामन्तों को नहीं दी जाती थी, वह मेवाड़ में राणा के अधिकार में रहती थी। वाहरी अत्याचारों के दिनों में जब राणा की शक्तियाँ बहुत निर्बल पड़ गयी थी, उन दिनों में राणा की आश्रित प्रजा के सामने अधिक संकट उपस्थित हो गये थे। प्रजा को अपने समीपवर्ती सामन्त का आश्रय लेना पड़ा। उस रक्षा के बदले प्रजा को अपने संरक्षक की दासता स्वीकार करनी पड़ी। जिन लोगों ने अपनी अरक्षित अवस्था में सहायता प्राप्त की, उनको वर्ष में कई-कई महीने सामन्तों के यहाँ जाकर खेती का कार्य करना पड़ा। यह अवस्था मेवाड़ राज्य में अपने आप फैली और उसके कारण प्रजा के सामने भीषण संकट पैदा हो गये। सन् 1818 ई. में राणा के साथ राज्य के सामन्तों 98