ने जो नयी संधि की, उससे राज्य की यह दुरवस्था दूर हुई। यूरोप के देशों में बहुत समय तक गुलामी की प्रथा चली है। उन दिनों में वहाँ पर जिस प्रकार के गुलाम पाये जाते थे, उनकी बहुत कुछ अवस्था यहाँ के राज्यों के उन लोगों से मिलती जुलती है, जो अपनी अरक्षित अवस्था में सामन्तों की सहायता खरीदा करते थे और उसका मूल्य चुकाने के स्थान पर वर्ष में कुछ दिनों तक उनके यहाँ रहकर उनकी खेती का काम किया करते थे। इन लोगों की परिस्थितियाँ बहुत कुछ यूरोप के गुलामों की तरह की थी। यद्यपि दोनों को एक सा गुलाम नहीं कहा जा सकता, परन्तु दोनों की दासता और विवशता अनेक अर्थों में एक सी थी। इन दासों के सम्बंध में इतिहासकार हालम ने बहुत कुछ खोज करने के बाद जो कुछ अपने ग्रंथ में लिखा है, उसको पढ़ने से मालूम होता है कि इन दासों की विवशता बिल्कुल दासता का रूप रखती है। मेवाड़ राज्य की वढ़ती हुई दुरावस्था में अवसरवादी सामन्तों ने प्रजा के साथ रक्षा करने के नाम पर जो व्यवसाय शुरू किया था, उसके फलस्वरूप अगणित संख्या में राज्य के कृषक और दूसरे लोग सामन्तों की ऐसी दासता में आ गये थे कि जिनसे उनका उद्धार हो सकना असंभव हो गया था। इन दिनों में अवसरवादी सामन्तों ने संरक्षक बनकर उन लोगों की भूमि पर अधिकार कर लिया था, जो राज्य भूमिया राजपूत कहलाते थे और वे बहुत समय तक अत्याचारों में रहकर निर्वल हो गये थे। अरावली के बहुत से किसान इसी प्रकार के दास हो गये थे। उनके अधिकार में जितनी भी भूमि थी, उस पर सामन्तों ने कब्जा कर लिया था और उन लोगों ने भूमि के असली मालिकों को दास बनाकर यहाँ रखा था। वे कृषक अपने स्वामी सामन्तों के यहाँ रहकर उनकी खेती का काम किया करते थे भूमि के छोटे-छोटे मालिकों की दुरवस्था को अनुभव करते हुए विद्वान हालम ने लिखा है - "लूट-मार और अत्याचार के दिनों में भूमि के निर्बल अधिकारियों की स्वतंत्रता नष्ट हो गयी है। उनकी भूमि पुर दूसरे लोग स्वामी बन बैठे हैं और जो असली मालिक थे, वे दासता का जीवन बिता रहे हैं।" हाली तथा बसी- अरावली प्रांत के 'हाली' लोगों की दशा पर दृष्टिपात करने की आवश्यकता है । सामन्तों का आश्रय लेने पर भूमि के छोटे-छोटे अधिकारी दासता में आ गये हों, यह पूरे तौर पर सही नहीं है। बल्कि राज्य के भीतर बहुत दिनों से जिस प्रकार भीषण अत्याचार हो रहे हैं, उनके कारण विशेष रूप से जिस श्रेणी की दासता उत्पन्न हुई है,वह 'बसी' के नाम से प्रसिद्ध है। कोटा राज्य के 'हाली' लोग भी यद्यपि दासता का भोग कर रहे हैं, परन्तु उनमें और बसी दासों में बहुत अंतर है । बसी लोगों की दशा उनकी अपेक्षा अधिक शोचनीय है । इसका कारण यह है कि अपनी भूमि पर अब उनका कोई अधिकार नहीं रह गया और जो भूमि उनके अधिकार में पहले थी,उसके सर्वेसर्वा मालिक सामन्त बन गये हैं । उनं सामन्तों के ऋण के जाल में ये लोग इस प्रकार फंसे हुए हैं कि उनका उससे कभी छुटकारा नहीं हो सकता । वे जीवन भर उनकी दासता स्वीकार करने के लिए प्रत्येक अवस्था में बाध्य हैं । यद्यपि उनकी उस अवस्था में अब बड़ा परिवर्तन हो गया है।। राजस्थान में प्रचलित रखवाली कर के समान इंगलैंड में भी किसी समय इस प्रकार का एक कर प्रचलित हुआ था सन् 1724 ईसवी में लाई लोवेट ने इंगलैंड के जार्ज प्रथम से प्रार्थना की थी कि “इंगलैंड की दशा इन दिनों में बहुत शोचनीय हो गई । चारों ओर लुटेरों के अत्याचारों से प्रजा का सर्वस्व नष्ट हो गया है। इन संगठित लुटेरों ने प्रजा के सामने एक प्रस्ताव रखा था कि यदि आप लोग वर्ष में एक निश्चित रकम कर के रूप में देना पसंद करे तो कुछ लोगों को सशस्त्र सैनिक बनाकर आपकी रक्षा की जा सकती है ।" प्रजा के द्वारा इस कर के स्वीकार करते ही लूट-मार बंद हो गयी। लेकिन जो लोग इस कर को अदा न करते, वे लूट लिए जाते थे 1 N 1. 99
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