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राजा और प्रजा।
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एक्सचेञ्जकी क्षतिपूर्तिके रूपमें ढेरके ढेर रुपए देने ही पड़ेंगे। यदि इस कामके लिये सरकारी खजानेमें रुपएकी कमी हो तो बिक्रीकी चीजोपर नया महसूल लगाना आवश्यक होगा। लेकिन यदि इसमें लंकाशायरवालोंको जरा भी अड़चन या कठिनता हो तो फिर रुई पर मह- सूल लगाया जा सकता है। बल्कि इसके बदलेमें पब्लिकवर्क्सका काम भी कुछ कम किया जा सकता है और दुर्भिक्ष फण्डको रोककर काम चलाया जा सकता है।

एक ओर तो कर्मचारियोंका कष्ट आँखोंसे नहीं देखा जाता और दूसरी ओर लंकाशायरवालोंकी हानि भी नहीं देखी जा सकती । और फिर यह बात भी नहीं है कि पचीस करोड़ अभागे भारतवासियोंके लिये भी कुछ भी दुःख न होता हो । धर्मनीति मनुष्यको इसी प्रका- रके संकटमें डाल देती है !

समाचारपत्रोंमें खूब आन्दोलन होने लगता है। आहत-नांड पक्षियों के झुंडकी तरह सभास्थलमें कानोंके परदे फाड़नेवाली चिल्लाहट मचने लगती है और अँगरेज लोग बहुत बिगड़ उठते हैं।

जिस समय मन यह कहता हो कि यह काम न्यायसंगत नहीं हो रहा है और विना उस कामको किए भी गुजारा न होता हो, उस समय यदि कोई धर्मकी दोहाई देने लगे तो बहुत क्रोध आता है। उस समय कोई युक्तिका अस्त्र तो रह ही नहीं जाता, खाली हाथ घूंसा मारनेको जी चाहता है। उस समय केवल मनुष्यपर ही नहीं बल्कि धर्मशास्त्रपर भी तबीयत खिजला उठती है।

भारतमंत्रीकी सभाके सभापति तथा दूसरे कई मातबर सभासदोंने इशारेसे कई बार कहा है कि यदि केवल भारतवर्षका ही नहीं बल्कि सारे साम्राज्यका ध्यान रखकर कोई कानून बनाया जायगा तो केवल स्थानीय न्याय और अन्यायका विचार करनेसे काम न चलेगा और