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अपमानका प्रतिकार।
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जब कि सर्वसाधारणको इस प्रकारकी एक धारणा हो गई है कि मुक- दमेका परिणाम बिलकुल अनिश्चित होता है और जब इस विषयमें उस अनिश्चिततासे उत्पन्न हुआ हम लोगोंका स्वभावदोष भी बहुत कुछ उत्तरदायी है तब बीच बीचमें निर्दोषका पीड़न और दोषीका छुटकारा शोचनीय परन्तु अवश्यम्भावी मालूम होता है ।

लेकिन जब बार बार यही देखा जाता है कि युरोपीय अपराधी छूट जाते हैं और इस सम्बन्धमें शासक लोग बिलकुल उदासीन रहते हैं तब इससे यही पता चलता है कि अँगरेज लोग भारतवासियों के साथ हृदयसे लापरवाहीका व्यवहार करते हैं । इसी अपमानका धिक्कार हृद- यमें काँटेकी तरह स्थायी रूपसे चुभा रहता है ।

यदि इससे बिलकुल उलटी घटनायें होतीं, यदि थोड़े ही समयमें भारतवासियोंके द्वारा बहुतसे युरोपियन मारे जाते और विचार होनेपर प्रत्येक अभियुक्त छूट जाता तो इस प्रकारकी दुर्घटनाओंकी सारी संभावना नष्ट करनेके लिये हजारों तरह के उपाय सोचे जाते । लेकिन जब प्राच्य भारतवासी व्यर्थ गोलियाँ और लाठियाँ खाकर मरते हैं तब पाश्चात्य शासकोंमें किसी प्रकारको दुर्भावनाके लक्षण नहीं दिखाई देते। यह भी नहीं सुननेमें आता कि कहीं इस प्रकारका कोई प्रश्न उठा है कि ये सब उपद्रव किस प्रकार दूर किए जा सकते हैं ?

लेकिन हम लोगोंके प्रति शासकोंकी जो यह अवज्ञा है, उसके लिये प्रधानतः हम ही लोग धिक्कारके योग्य हैं क्योंकि हम लोगोंको यह बात किसी प्रकार भूल न जानी चाहिए कि सम्मान कभी कानू- नकी सहायतासे प्राप्त नहीं किया जा सकता । सम्मान सदा अपने हाथमें ही होता है। हम लोगोंने जिस प्रकार गिड़गिड़ा कर अदा-