लोगोंकी सारी शिक्षा इसीपर निर्भर है। क्या हम लोग अपने नौक-
रोंको नहीं मारते ? क्या हम लोग अपने अधीनस्थ लोगोंके साथ उद्दंड-
ताका व्यवहार नहीं करते और निम्नश्रेणीके लोगोंके प्रति सदा असम्मान
प्रकट नहीं करते ? हम लोगोंका समाज जगह जगह उच्च और नीचमें
विभक्त है। जो व्यक्ति कुछ भी उच्च होता है वह नीच जातिवाले व्यक्तिसे
अपरिमित अधीनताको आशा करता है। यदि कोई निम्नवी मनुष्य
तनिक भी स्वतंत्रता प्रकट करता है तो ऊपरवालोंको उसका वह
स्वतंत्रता प्रकट करना असह्य जान पड़ता है। भले आदमी तो यही सम-
झते हैं कि देहाती और गँवार किसान मनुष्यों में गिने जानेके योग्य ही
नहीं हैं। यदि किसी सशक्त मनुष्यके सामने कोई अशक्त मनुष्य पूरी
तरहसे दबकर न रहे तो उसे जबरदस्ती अच्छी तरह दबा देनेकी
चेष्टा की जाती है । यह तो बराबर देखा ही जाता है कि चौकीदारके
ऊपर कान्स्टेबुल और कान्स्टेबुलके ऊपर दारोगा केवल सरकारी
काम ही नहीं लेते, वे केवल अपने उच्चतर पदका उचित सम्मान
प्राप्त करके ही सन्तुष्ट नहीं होते बल्कि उसके साथ साथ अपने अधी-
नस्थ कर्मचारियोंसे गुलामी करानेका भी दावा रखते हैं। चौकीदारके
लिये कान्स्टेबुल एक यथेच्छाचारी राजा होता है और कान्स्टेबुलके
लिये दारोगा भी वैसा ही अत्याचारी राजा होता है । इस प्रकार हमारे
समाजमें सभी जगह छोटोंको बड़े लोग जिस प्रकार अपने नीचे दबाए
रखना चाहते हैं उसकी कोई सीमा ही नहीं है । समाजमें जगह जगह
प्रभुत्वका भार पड़ा हुआ है जिससे हमारी नसनसमें दासत्व और
भय घुसा रहता है। जन्मसे हम लोगोंका जो नियत अभ्यास होता
है वह हम लोगोंको अन्धवाध्यताके लिये पूरी तरहसे तैयार कर
रखता है। उसीसे हम लोग अपने अधीनस्थ लोगोंके प्रति
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अपमानका प्रतिकार।
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