पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 हरिश्चन्द्र को अपना यज्ञ अपास्यआंगिरस से कराना पड़ा। उस युद्ध में हारने के बाद ही सम्भवत: विश्वामित्र ने राज-संन्यास ले लिया था। राजर्षि तो वे थे ही, ब्रह्मर्षि भी हो गए। इनके बाद उस गद्दी पर उनके पुत्र अष्टक और पौत्र लौहि (३७) बैठे। सम्भवतः उनके पौत्र लोहि से हैहय तालजंघ ने राज्य छीन लिया। बाद में विश्वामित्र ने ऋग्वेद के तीसरे मण्डल की रचना कर महर्षि पद पाया। त्रिशंकु के पुत्र महादानी और महाबली हरिश्चन्द्र हुए, जिन्होंने दिग्विजय करके अश्वमेध यज्ञ किया। इन्होंने सोधपुर नगर बसाया। इनको चिरवाल तक पुत्र नही हुआ, तो इन्होंने वरुण की उपासना की और कहा कि मैं वरुण को पुत्र की बलि दूंगा। तिस पर पुत्र रोहित का जन्म हुआ, पर मोहवश राजा ने पुत्र की बलि न दी। वसिष्ठ की सलाह से वह सात बार वन को चला गया और लौट आया। बाईस वर्ष पीछे हरिश्चद्र को. जलोदर रोग हुआ और समझा गया कि यह वरुण देवता का कोप है। अंत में राजपुत्र रोहित के स्थान पर एक ऋषिकुमार शुनःशेप को वेदर्षि अजीगतं से हजार गाय देव र मोल लिया गया। उसकी बलि देव र यज्ञ की तैयारी होनी थी। बदनामी से बचने के लिए वसिष्ठ इस यज्ञ के पुरोहित न बने । अपास्यआंगिरस को पुरोहित बनाया गया। शुन शेप को यज्ञ के स्तूप में बांधने को कोई राजी न हुआ, तो उसका बाप ही सौ गायें और लेकर तैयार हो गया तथा सौ गायें लेकर उसके अंग काटने को भी तैयार हो गया। यह सूचना विश्वा मित्र को मिली। वह लड़का उनकी बहन का परिजन था। उन्होंने अपने पचास परिजनों को शुनःशेप के स्थान में बलि देने को कहा; पर उन्होंने नहीं माना । इस पर क्रुद्ध होकर विश्वामित्र ने उन ५० परिजनों को कुटुम्ब सहित दक्षिणारण्य में निका- सित कर दिया तथा स्वयं यज्ञभूमि में उपस्थित होकर बालक की प्राण- रक्षा की। यही कथा पीछे उलट-पुलट होकर हरिश्चन्द्र वी प्रचलित कथा वन गई है. जिस में पिता-पुत्र दोनों के चरित्र माथित कर दिए गए हैं। इस वंश की दूसरी शाखा सगर वंश की दशरथ (३८) के काल में मध्यभारत में कहीं स्थापित की गई। इस वंश के प्रथम राजा बाह (३८) हुए, जिन्हें हैहय राजा तालजंघ ने उत्तर भारत पर आत्रमण करते समय परास्त किया। बाहु राज्यच्युत हो अग्निऔर्व के आश्रम में रहने लगे, वहीं उनके पुत्र सगर का जन्म हुआ। बाहु उसी आश्रम में स्वर्गत हुए. पर सगर आगे चलकर बड़ा प्रतापी राजा हुआ। उसने हैहयों को जीता और अपने राज्य का विस्तार वि या। उसे हैहयों के परम्परागत शत्रु अग्निऔर्व - १०२