कृपा कर मुझ दास से वृत्तान्त स्पष्ट कहो।"
"पुत्र! सीतापति राम तो मायावी मनुष्य है, वह तुम्हारे हाथों मरकर भी फिर से जी उठा। तुम्हीं अब राक्षसकुल की मुकुटमणि हो। हे, पुत्र! इस कालसमर में शीघ्र आकर राक्षसकुल के मान की रक्षा करो।"
यह सुनते ही मेघनाद ने क्रोध से कण्ठ की पुष्पमालाओं को तोड़कर और आभरणों को नोचकर फेक दिया। फिर कहा, "धिक्कार है मुझे, हाय! शत्रु ने स्वर्णलंका को घेर लिया है और मैं यहां रमणीदल में विहार कर रहा हूं। हा, क्या लंकापति के युवराज को यही शोभा देता है? अरे, रथ लाओ। मैं अभी शत्रुओं का विध्वंस करके इस अपवाद को दूर करूंगा। लाओ, मेरे शस्त्र और कवच।"
यह कहकर वह उठ खड़ा हुआ। भीमकाय सैनिक बालाएं विविध शस्त्र और स्वर्णकवच से उसे सज्जित करने लगीं। युद्धवेश धारणकर जब वह जाने लगा, तब सुलोचना ने नेत्रों में जल भरकर कहा, "प्राणसखे! मुझ दासी को छोड़कर कहां जा रहे हैं? यह अभागिनी आपके बिना कैसे प्राण धारण करेगी? नाथ! गहन कानन में यदि लता स्वेच्छा से गजपद में लिपट जाए तो गजराज उसे पदाश्रय तो अवश्य ही देते हैं। हे, गुणनिधे! मुझ किंकरी को आप क्यों त्याग रहे हैं?"
मेघनाद ने उसे हृदय से लगाकर कहा, "सती सुलोचने! तुमने इन्द्र- जीत को जीतकर जिस दृढ़ बंधन में बांध रखा है, उस बंधन को कौन खोल सकता है? चिन्ता न करो प्रिये! मैं भिक्षुक राम का हनन कर शीघ्र ही लौट आऊंगा। चन्द्रवदनी! मुझे जाने दो, विह्वल मत हो।"
यह कहकर वह रथ पर आरूढ़ हो पिता के आवास की ओर चल दिया। उसने देखा, मार्ग में विविध रणवाद्य बज रहे हैं। हाथी चिंघाड़ रहे हैं। घोड़े हिनहिना रहे हैं। पैदल और रथी हुंकार रहे हैं। वीर लौहवर्म पहन रहे हैं। ध्वजस्तम्भ पर गगनचुम्बी ध्वजा फहरा रही है। सुनहरे रथ इधर-से-उधर विद्य त्-गति से आ जा रहे हैं । सिरों पर कनक टोप पहने, म्यानों में विकराल तलवारें डाले, पीठ पर अभेद्य ढाल बांधे वीरों की पंक्ति-की-पंक्ति जुझाऊ बाजे बजाती आगे बढ़ रही है। मेघनाद का रथ दिशाओं को गुंजित करता हुआ रावण के द्वार पर जा पहुंचा। उसे देख राक्षस सैन्य हर्ष से चिल्ला उठी।
मेघनाद रथ से उतरकर सभा-भवन में पहुंचा और पिता के चरणों में गिरकर हाथ जोड़कर बोला, "पिता! मैंने सुना कि बैरी राम फिर मरकर जी उठा। उसने मेरे वीर अनुज का वध किया है। आज्ञा कीजिए कि मैं आज उसका समूल नाश कर डालूं। मैं उसे भस्म करके उस भस्म को वायु
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