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पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/२६

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के समान अटल देखा है; परन्तु मेघनाद उनसे अधिक अटल है; किन्तु देखो, अब क्या किया जाए? अब तो सिंहिनी सिंह के साथ आकर मिल गई। हे, सखे! रावण कालसर्प है और मेघनाद उसका विषदन्त, उसी के तेज से वह तेजवान हो रहा है। वह विषदन्त किसी भांति टूटे, तो मेरा मनोरथ सफल हो। नहीं तो सेतु बांधकर इस कनकलंक में आना व्यर्थ है।"

"राघव! आप सत्य कहते हैं; परन्तु राक्षसकुल तो अपने ही पाप से नष्ट हो रहा है। मेघनाद का वध अवश्य होगा; परन्तु सावधान रहिये, सुलोचना महावीर्यवती है और उसकी संगिनियां सिंहिनी हैं। जिस वन में सिहिनियां आती-जाती हों, वहां के निवासियों को सदा सावधान रहना चाहिए। रात्रि में सबको चौकन्ना रहना होगा।"

"मित्र! आप कृपाकर लक्ष्मण के साथ द्वार-द्वार जाकर सब सेना का निरीक्षण कर लें कि कौन' कहां जाग रहा है। वीरवाहन के साथ युद्ध से सब थक गये हैं। देखना चाहिए कि अंगद कहां है, नल-नील और सुग्रीव कहां हैं। पश्चिमी द्वार पर धनुष-बाण लिये मैं उपस्थित हूं।"

पांच

बहुत रात्रि व्यतीत हो चुकी थी, परन्तु देवराज इन्द्र अभी तक कुसुम शय्या पर नहीं गये थे। शची मोहिनी रूप धरे सम्मुख खड़ी थी और अप्सराएं हाथ बांधे उपस्थित थीं। शची ने कहा, "देवराज! आपकी इस चरणदासी ने ऐसा क्या अपराध किया कि आप कुसुम-शय्या से विरत होकर चिन्तामग्न बैठे हैं? मेनका चौंक पड़ती है, उर्वशी जड़वत खड़ी है, चित्रलेखा चित्रलिखित-सी खड़ी है। निद्रादेवी भय से आपके निकट आने का साहस नहीं करती। भला, यह घोररात्रि क्या जागरण करने के योग्य है?"

"देवी ! मैं यह सोच रहा हूं कि कल लक्ष्मण कैसे दुष्ट मेघनाद का वध करेगा।"

"कान्त! लक्ष्मण को वे अस्त्र तो मिल ही गये, जिनसे तारक का वध किया गया था। आपके भाग्य से शंकर और पार्वती अपने पक्ष में हैं। मायादेवी स्वयं लक्ष्मण को विधि बतायेंगी, फिर अब यह चिन्ता क्यों?"

"देवी! तुम्हारा कहना सत्य है; परन्तु मेरी समझ में नहीं आता कि माया कैसे लक्ष्मण की सहायता करेंगी। प्रिये! पृथ्वी पर मेघनाद की गर्जना से ऐरावत स्थिर हो जाता है और मेरा साहस भाग जाता है। लक्ष्मण महाबली है; परन्तु अजेय मेघनाद के सम्मुख वह क्या है?"

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