राम ने उत्तर दिया, "सुन्दरी! मैं अकारण किसी से विवाद नहीं करता। रावण मेरा शत्रु है और तुम सब उसकी कुलवधुएं हो; किन्तु क्या तुमने कोई अपराध किया है, जो मैं तुम्हारे साथ बैरी जैसा बर्ताव करूं? राम का जन्म वीरकुल में हुआ है, तुम्हारी स्वामिनी वीरपत्नी है। मैं सहस्र मुख उसकी पतिभक्ति की प्रशंसा करता हूं और बिना युद्ध किए ही हार मान लेता हूं। जगत को विदित है कि राम भिक्षुक है, इसलिए तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम प्रसन्न रहो।" फिर उन्होंने हनुमान से कहा, "हे, मारुति! तुम तुरन्त सावधानी से वामादल को संतुष्ट कर शिविर से पार निकाल दो।"
हनुमान पद-वन्दना कर चल दिए, दूती भी चल दी।
विभीषण हंसकर बोले, "रघुपति! तनिक बाहर आकर सुलोचना का पराक्रम देखिए। कैसा अपूर्व कौतुक है! कहिए, इस वीर्यवती रणचंडी से कौन युद्ध कर सकता है?"
"मित्र ! मैं तो दूती की आकृति देखकर शंकित हो गया था। अरे, इस बाघिनी को जो छेड़े, वह मूढ़ है। वह हमारे कटक के बीच कैसे जा रही है, जैसे दो पर्वतों के बीच हथिनी जाती है। मित्र! ये विद्य त्-प्रभासी वामाएं कौन-कौन हैं?"
"सबसे आगे कृष्णवर्ण घोड़े पर हाथ में हेमध्वज लिए नरमुण्डमालिनी है। उसके पीछे अतुलित विद्याधरी की भांति शोभायमान बाघकरी है। देखिए, वीणा, बांसुरी, मृदंग, मंजीरा सब यन्त्र मधुरध्वनि से बज रहे हैं। उनके पीछे वीरांगनाओं के बीच शूलपाणि सुलोचना है।"
"वाह! जैसे सिंह की पीठ पर महिषमर्दिनी दुर्गा। उसी भांति यह वीर्यवती अपने वामादल के साथ बैरीदल का तिनके-भर भी भय न मानकर किस भांति धीरगति से जा रही है! मित्र, चित्ररथ रथी ने जो कहा था, कि साक्षात् मायादेवी मुझ दास को सहायता देने आएंगी, कहीं यही तो वे नहीं हैं? कहीं देवी ने ही छल से लंका में न प्रवेश किया हो?"
"राघव! विख्यात दैत्य कालनेमि की तनया सुलोचना यही है। इसका जन्म महाशक्ति से हुआ है। इसे पराजित करने की शक्ति किसमें है? जिस सिंह के भय से सहस्राक्ष इन्द्र सुख की नींद नहीं सोता है, उसे इसने पदतल में डाल रखा है। जैसे जलधारा दावानल को शमित करती रहती है, वैसे ही यह दैत्यबाला अपने प्रेमालाप से कालाग्नि रूप मेघनाद को शान्त किए रहती है। तभी स्वर्ग में देवता, पाताल में नाग, नरलोक में नर सुख से रह पाते हैं।"
"सत्य है मित्र! मेघनाद महारथी है। मैंने परशुराम को युद्ध में पर्वत
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