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पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/२९

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धम की दुहाई देकर यह निवेदन करता हूं।"

शिव हंस दिए। बोले "सौमित्र! मैं तुम्हारे साहस की प्रशंसा करता हूं। आज तुमपर प्रसन्नमयी प्रसन्न हैं, फिर मैं कैसे तुम्हारे साथ युद्ध कर सकता हूं! जाओ पूजा करो।"

यह कहकर शिवमूर्ति अन्तर्धान हो गई। लक्ष्मण आगे बढ़े; परन्तु विकट गर्जन सुन चौंककर क्या देखते हैं कि एक भयानक सिंह पूंछ हिलाता आ रहा है। लक्ष्मण ने तलवार खींच ली; परन्तु सिंह लक्ष्मण की परिक्रमा कर वहां से चला गया। बादल गरजे, बिजली तड़पी भयानक आंधी आई, चारों और भीषण नाद उटता रहा। लक्ष्मण वीरता से खड़े यह देखते रहे। फिर आकाश में तारे छिटक आए। फूल खिल उठे। सुगन्धित वायु बहने लगी। बहुत-से कोमल कंठस्वरों से गाने की ध्वनि सुनाई दी। सहसा अनेक सुन्द दरियां गीत गाती, बजाती विहार करती दीखने लगीं। कोई सरोवर में स्नान कर रही है, कोई वेणी में मोती गूंथ रही है, कोई वीणा पर अलाप रही है। उन सभी ने लक्ष्मण को घेर लिया।

एक ने हंसकर कहा, "वीरचूड़ामणि! तुम्हारा स्वागत है। हम सब निशाचरी नहीं, स्वर्ग की अप्सराएं हैं। हम स्वर्ग के नन्दनवन में निवास करती तथा आनन्द से अमृतपान करती हैं। हमारे यौवन- उद्यान में सदा नववसन्त रहता है। हमारी अधर-सुधा कभी नहीं सूखती, हम अमर-अक्षय-यौवन देववालाएं हैं। हम तुम्हें पतिरूप में वरना चाहती हैं। हमारे साथ चलो। जिस सुख-भोग के लिए मनुष्य युग-युग तपस्या करता है, वही आज हम तुम्हें देना चाहती हैं। हम तुम्हें उस आनन्द-जगत में ले जाएंगी, जहां रोग-शोक रूपी कीड़ा जीवन के पुष्प को नष्ट नही कर सकता।"

लक्ष्मण हाथ जोड़कर बोले, "देवबालावृन्द! मुझ दास को क्षमा करें। मेरे ज्येष्ठ भ्राता राम की भार्या वैदेही को वन में अकेली पाकर राक्षसराज रावण हर लाया है। मुझे घोर युद्ध में उसका नाश करके जानकी का उद्धार करना है। मुझे आप ऐसा वर दीजिए कि मेरा प्रण पूरा हो। मैं नरकुल में जन्मा हूं। आप देवबालाएं मेरी माता के समान हैं।"

लक्ष्मण के इतना कहते ही चमत्कार हुआ। एकाएक सब गायब हो गई। सम्मुख सरोवर देवी का मन्दिर दीख पड़ा। लक्ष्मण ने सरोवर में झटपट स्नान कर नीलोत्पल के फूल ले देवी के चरणों में चढ़ाकर साष्टांग प्रणाम किया। अकस्मात् सैकड़ों दीपावली से मन्दिर जममगा उठा। झांझघण्टे बज उठे। गन्ध से दिशाएं सुवासित हो गईं। देवांगनाएं देवी की स्तुति में गान करने लगीं।

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