पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/३६

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हो? तुम्हारे पद-प्रसाद से यह दास देव, दैत्य और नर सबको युद्ध में सदा जीतता रहा है। इन्द्रभी भय से सुख-नींद नहीं सोता। पाताल में नागेन्द्र और पृथ्वी पर नरेन्द्र मेरे नाम से थर्राते हैं।"

"पुत्र! राम मायावी है। वह मरकरभी जी उठता है। देव उसके सहायक हैं। अरे, शिला उसके आदेश से जल में तैरती है। अग्नि बुझ जाती है। हाय सूर्पणखा! मां के उदर ही में तू क्यों न मर गई?"

"माता! अग्नि लगने पर कौन घर में सोता रहेगा? शत्रु नगर को घेरे पड़े हैं, मैं कैसे विरत हो सकता हूं? मुझे इन्द्रजीत के रहते क्या राक्षसकुल भयभीत रहेगा? प्रभात होने लगा है, पक्षी वन में बोल रहे हैं। अब आज्ञा दीजिए माता।" मन्दोदरी आंसु पोंछकर बोली,"अब क्या कहूं? इस कालरण में विरूपाक्ष तुम्हारी रक्षा करेंगे।" फिर सुलोचना से कहा, "वधू! तुम मेरे साथ रहो तुम्हीं को देखकर ये दग्ध प्राण शीतल रहेंगे।" यह कह और आशीर्वाद दे कर मन्दोदरी चल दी।

मेघनाद ने पत्नी ने कहा, "प्राणसखि! अब तुम भी माता के पास जाओ। मैं पैदल ही यज्ञशाला में जाऊंगा और समर में विजयी हो शीघ्र लौटूंगा।"

"नाथ! जैसे शशिकला रवि के तेज से उज्ज्वल होती है, उसी भांति यह दासी भी है। आपके बिना तो यह जगत् अन्धकार-मात्र है।"

"प्रिये! मैं शत्रु का नाश करके शीघ्र लोदूंगा। कितना प्रकाश फैल गया है, दिन उदय हो रहा है! अनुमति दो प्रिये! मैं जाऊं!

यह कहकर मेघनाद चल दिया। सुलोचना दो पग बढ़ आकाश की ओर हाथ उठाकर प्रार्थना करने लगी एहे देवी, कृपामयी! लंका पर दया करना, विग्रह में राक्षस कुल-सूर्य की रक्षा करना, अपने अभेद्य कवच से शूर को आवृत करना। हे देवी! इस छिन्न लता का आश्रय यही तरुराज है। जगदम्बे! उसे कुठार स्पर्श न कर सके।"

उधर कैलास धाम में जगदम्बा पार्वती स्वर्गसिंहासन पर बैठी कुछ विचार रही थीं कि उनका तिहासन हिल उठा। सदन सुलोचना के क्रन्दन से भर गया, जिसे सुनकर जया विजया विचलित हो उठीं।

जया ने कहा, "देवी! आपकी दासी सुलोचना बहुत व्याकुल हो रही है। उस पर आपको दया न आ जाए, इससे इन्द्र भयभीत हो गया है।"

अम्बिका ने उत्तर दिया, "जया! तुम्हारा कहना सत्य है। सती सुलोचना ने मेरे अंश से जन्म लिया है। इन्द्रजीत स्वयं अपने तेज से जगत् जयी है, फिर सती का तेज भी उससे मिल गया है; परन्तु वैदेही का दुःख तो देखा नहीं जाता। आज मैं अपना तेज हरण करूंगी। जैसे दिनान्त में

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