पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

हैं, फिर उसका यातनापूर्वक वध होगा।"

"अहा,रक्षीवर रावण धन्य है! वह जगत् में महिमा का समुद्र है! अरे, पृथ्वीतल पर ऐसा वैभव किसका है?"

"किन्तु इस भिखारी राम ने रत्नमयी लंका को विधवा-सी बना दिया है। देखो, पर्वत के समान कुम्भकर्ण महारांज समरभूमि में मरे पड़े हैं। इसकी कौन कल्पना कर सकता था!"

"देखो, ये लंका के प्रासाद हेमकूट की शृंगावली की भांति आकाश का चुम्बन कर रहे हैं। खिड़कियों में हाथी दांत की चौखट पर स्वर्णद्वारों में निहित वीरों की म्लानवदना राक्षसवधुएं अश्रुपूर्ण नेत्रों से सेना की ओर देख रही हैं।"

"निःसन्देह लंका के समान वैभव इस लोक में नहीं; परन्तु संसार में कोई पद चिरस्थाई नहीं। सागर-तरंग की भांति एक वस्तु आती और दूसरी जाती है। चलो, भाई! प्राचीर पर चलें। देखो, समस्त प्राचीर पर नरंमुण्ड ही नरमुण्ड दीख रहे हैं।"

बलिष्ठ राक्षस प्रहरियों से आरक्षित निकुम्भला यज्ञागार में अकेला मेघनाद रेशमी वस्त्र धारण किए कुशासन पर बैठा यज्ञ कर रहा था। भाल पर चन्दन की बिन्दी और गले में फूलों की मालाएं। धूपदान में धूप जल रही थी। घृत के एक सहस्र दीप जल रहे थे। पुष्पों की ढेरियां रखी हुई थीं। पात्रों में गंगाजल भरा था। सम्मुख स्वर्णघण्ट और विविध रत्न पात्रों में पूजा सामग्री रखी हुई थी। रथीन्द्र मन्त्रपाठ करके आहुति देने लगा। हठात लक्ष्मण हाथ में नंगी तलवार लिए वहां प्रविष्ट हुए। शस्त्रों की झनझनाहट से मेघनाद चौंक उठा। सौम्यमूर्ति लक्ष्मण को देखकर वह अग्निदेव का भ्रम कर उठ खड़ा हुआ।

मेघनाद ने साष्टांग प्रणाम करके कहा, "हे अग्निदेव! यह दास आज आपकी पूजा कर रहा है। क्या इसीलिए इस रूप में प्रकट होकर आपने लंकापुरी को पवित्र किया है? हे, देव! आपको प्रणाम है।"

उसने पृथ्वी पर गिरकर लक्ष्मण को प्रणाम किया। लक्ष्मण बोले, "सावधान रावणि! मैं अग्निदेव नहीं, तुम्हारा चिरशत्रु लक्ष्मण हूं। मैं अभी तुम्हारा वध करूंगा।" यह कहकर लक्ष्मण तलवार उठाकर आगे बढ़े।

मेघनाद भयभीत तथा विस्मित होकर बोला, "तुम लक्ष्मण हो? तब कहो, किस कौशल से इस शत्रुपुरी में घुस आए? इस पुरी की प्राचीर दुर्लघ्य है। असंख्य योद्धा चक्रावली के रूप में प्राचीर भ्रमण कर रहे हैं। द्वार पर यक्षपति को विजय करने वाले सहस्रों योद्धा रक्षक हैं। इस पृथ्वी

३६