पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/३९

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"पर देव और मनुष्य योनि में ऐसा कौन जन्मा है, जो अकेला इस राक्षस वृन्द को रण में जय करे। कहो, वीर! किस माया से तुमने सबको छला? नहीं-नहीं, तुम अवश्य भगवान' वैश्वानर हो, इस दास को प्रवंचना से मुक्त कर वर दो कि मैं राम का वध करके लंका को निःशंक करूं। देखो, सेनाएं शृंगीनाद कर रही हैं। अब विलम्ब नहीं कर सकता।"

लक्ष्मण ने क्रोध से कहा, "अरे, दुर्दान्त रावणि! मैं तेरा काल हूं। आयुहीन जन को काटने के लिए धरती फोड़कर सांप निकल आता है। मूढ़ तू देवबल से बली होकर सदा देवकुल की अवहेलना करता रहा, सो आज तेरा मैं यहीं हनन करूंगा।" वे तलवार ले आगे बढ़ आए।

मेघनाद ने पीछे हटकर कहा, "तब ठहरो, यदि तुम सत्य ही रामानुज लक्ष्मण हो, तो मैं अभी तुम्हारी युद्ध की इच्छा पूर्ण करूंगा। हे, वीर! तुम इस धाम में प्रथम बार आए हो, इसलिए शत्रु होने पर भी मेरे अतिथि हो। क्षण-भर मेरा आतिथ्य ग्रहण करो। मैं तनिक वीरसाज सज लूं, अस्त्र ले लूं।"

लक्ष्मण ने गरजकर कहा, "अरे, बाघ के जाल में आ जाने पर क्या 'किरात उसे छोड़ देता है? मैं तेरा इसी भांति निरस्त्र वध करूंगा।"

मेघनाद भी क्रोधित हो उठा। बोला, "अरे, क्षत्रिय कुलकलंक! निरस्त्र अरि पर आघात करना रघुकुल की मर्यादा नहीं। तूने चोर की भांति मेरे मन्दिर में प्रवेश किया है, इसलिए ठहर, मैं तुझे चोर की भांति दण्ड दूंगा।"

मेघनाद ने शृंगपात्र उठाकर जोर से लक्ष्मण के सिर पर दे मारा। चोट खाकर लक्ष्मण मूच्छित होकर गिर पड़े। मेघनाद उनकी तलवार, धनुष आदि उठाने लगा; पर उठा नहीं सका। द्वार पर भीमकाय शूल हाथ में लिए विभीषण खड़े थे। उन्हें देखकर मेघनाद ने कहा, "आहा, अब इतनी देर में समझा कि लक्ष्मण ने किस भांति इस पुरी में प्रवेश किया। तात! आपको धिक्कार है, अरे, सती निकषा आपकी माता, दशानन आपका सहोदर और महापराक्रमी कुम्भकर्ण आपका भाई है। यह दास आपका भ्रातृपुत्र इन्द्रविजयी है। अपने घर का द्वार चोर को दिखलाते हैं? क्या कहूं, आप पितृतुल्य गुरुजन हैं। कृपाकर द्वार छोड़िए, मैं अस्त्रागार में जाऊंगा। आज यहीं इस रामानुज को यमपुरी भेजकर लंका के कलंक को दूर करूंगा।"

विभीषण ने उत्तर दिया, "वीर! तुम्हारा अनुरोध वृथा है। मैं राम का दास हूं।"

"पितृव्य! आपकी बात सुनकर मैं लज्जित हुआ। हाय, आप राम

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