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पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/४७

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लक्ष्मण ने अधर्मपूर्वक मेरे पुत्र का वध किया है। आज मैं उसका हनन करूंगा। कृपा कर रास्ता छोड़ दीजिए।"

कार्तिकेय ने कहा, "रथीराज! देवराज इन्द्र के आदेश से मैं आज लक्ष्मण की रक्षा करूंगा। तुम मुझे बाहुबल से परास्त करके आगे जा सकते हो।"

यह सुनकर रावण ने हुंकार भरी और आग्नेयास्त्र छोड़ दिया, जिससे कुमार कार्तिकेय शरजाल में छिप गए। तभी विजया सौदामिनी के रूप में आकर कुमार के कान में बोली, "हे, शक्तिधर! शक्ति का आदेश है कि अपने अस्त्र समेट लो। आज रावण रुद्रतेज से परिपूर्ण है।"

कार्तिकेय ने हंसकर रथ लौटा लिया। अब रावण सिंहनाद करता हुआ इन्द्र के ऐरावत के सम्मुख आया। हजारों गन्धर्व दौड़कर रावण पर आग्नेयास्त्रों की वर्षा करने लगे। रावण ने सबको परास्त कर ऐरावत के सिर पर तोमर मारी; परन्तु इन्द्र ने उसे बीच ही में काट डाला।

यह देख रावण क्रुद्ध हो बोला, "अरे, निर्लज्ज ! तेरी ही चाल से पुत्र का वध हुआ है और अब उसके वध होने पर तू लंका में आया है? शोक, तू अमर है; पर लक्ष्मण की रक्षा आज मेरे हाथ से नहीं कर सकता।"

रावण गदा लेकर रथ से कूद पड़ा। इन्द्र ने वज्र-प्रहार किया। रावण ने भी गदा मारकर ऐरावत को गिरा दिया, फिर रथ पर सवार हो गया। इन्द्र भी रथ पर सवार हो गए। दोनों में घनघोर दिव्यास्त्रों से युद्ध होने लगा। राम दिव्य रथ पर बैठे धनुष-बाण ले सिंहनाद कर आगे बढ़े।

रावण ने राम को सम्बोधित करके कहा, "सीतापति! आज मैं तुमसे नहीं लगा। इस पृथ्वी पर और एक दिन निर्विघ्न जीवित रह लो। वह तुम्हारा कपटी पामर भाई कहां है? आज उसे मारूंगा।"

उसने दूर से लक्ष्मण को देखा। उसने भैरव नाद करते उसी ओर रथ बढ़ाया। लक्ष्मण भी कभी रथ पर चढ़कर, कभी उतरकर युद्ध करने लगे।

हनुमान भी विडालाक्ष को मारकर रावण के सम्मुख आकर हुंकार भरने लगे।

रावण ने उनपर सहस्र बाण छोड़कर कहा, "हट रे, पशु! मार्ग छोड़।"

हनुमान ने वायु का स्मरण किया और गरजकर बोले, "अरे, परदारा लोभी! चोर! तनिक ठहर।"

उन्होंने रथ को पकड़कर घुमा डाला। रावण महास्त्र छोड़ आगे

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