पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/४६

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विधाता हमारे प्रतिकूल है। तुम शीघ्र अन्तःपुर लौट जाओ। मैं इस समय रण का यात्री हूं। अब तो मुझे पुत्रश्रेष्ठ की मृत्यु का बदला लेना है। जाओ, देवी! विलाप के लिए बहुत समय मिलेगा। मैं तनिक उस कपटी चोर सौमित्र का हृदय विदीर्ण कर आऊं, फिर इस निरर्थक राज्यसुख को तिलांजलि देकर हम दोनों रात-दिन एकान्त में बैठ पुत्र का स्मरण करते रहेंगे। अरे, रोती हो? रानी यह रोषाग्नि अश्रुनीर से न बुझेगी। विशाल शाल आज भूपतित हो गया। गिरिवर का शृग चूर्ण हो गया। चन्द्रमा को सदैव के लिए राहु ने ग्रस लिया।"

"हाय, इस कनकलंका को अनाथ करके राक्षसकुल के अन्तिम एक- मात्र नक्षत्रस्वरूप तुम भी उस मायावी के सम्मुख जा रहे हो। हे, नाथ! मैं कैसे धैर्य धारण करूं?"

"देवी! धैर्य धारण करना ही होगा। अब तुम अन्त:पुर में जाओ।"

रानी रोती हुई, गिरती-पड़ती अन्तःपुर की ओर बढ़ी।

रावण ने अपने सैनिकों को ललकारकर कहा, 'जिसके पराक्रम से राक्षस सैन्य देवलोक और नरलोक को पराजित करती रही, जिसके भय से पाताल में नाग भयभीत रहे, वह राक्षसकुल का दीपक अन्याम्य समर में मारा गया है। रामानुज लक्ष्मण ने चोर की भांति देवालय में प्रवेश करके पुत्रवर का वध किया है। हाय, मेरा पुत्र वहां उस समय निरस्त्र था, उसी दशा में वह मारा गया। मैंने तुम्हें सदा पुत्रवत् पाला है, सारे भूमण्डल में राक्षसवंश की ख्याति फैली है; परन्तु मैंने व्यर्थ देव, दैत्य न रकुल को जय किया। अब विलाप से क्या होगा? क्या वह फिर लौट आएगा? क्या आंसुओं से मृत्यु भी द्रवित हो सकती है? मैं आज युद्ध में अधर्मी मूढ़ सौमित्र का वध करूंगा, नहीं तो लंका में नहीं लौटूंगा। रथीगण! यह मेरी प्रतिता है। अरे, मेघनाद का वध हुआ है, यह सुनकर राक्षसकुल में कौन जीना चाहेगा? चलो, समर में पुत्र का शत्रु के रक्त से तर्पण करें।"

यह सुन मेना सिंहनाद कर उठी और उसने युद्धस्थल की ओर मुख किया। युद्धस्थल पहुंचते ही दोनों सेनाओं में घनघोर युद्ध छिड़ गया। हाथी, पैदल, रथी, सवार सब परस्पर लड़ने लगे। पुष्पक पर आरूढ़ रावण को सारथी वायुवेग मे राम के रथ के सम्मुख ले चला।

रावण ने सहस्रों मायास्त्र चलाकर इन्द्र के व्यूह को छिन्न-भिन्न कर डाला। कुमार कार्तिकेय अग्नि के रथ में बैठकर आगे बढ़े। उन्हें देख रावण रथ रोककर हाथ जोड़ प्रणाम कर बोला, "देवकुमार। यह दास शंकर और शंकरी की रात-दिन पूजा करता है। आज आपको बैरी दल के साथ क्यों देखता हूं? नराधम राम पर आपका इतना अनुग्रह क्यों है? कपटी

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