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पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/४९

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रही थीं। एक स्थान पर लक्ष्मण पृथ्वी पर पड़े थे। राम भी निकट ही मूच्छित पड़े थे। विभीषण, अंगद, हनुमान, नल, नील, सुग्रीव, सुबाहु आदि सेनानायक नीचा सिर किए खड़े थे। सैन्य स्तब्ध थी। कोई विश्राम नहीं कर रहा था।

कुछ देर बाद राम की मूर्छा टूटी। उन्होंने चैतन्य होकर लक्ष्मण को सम्बोधित करते हुए कहा, "अरे, वीर! तुम तो सदैव रात्रि में धनुष-बाण लिए जागा करते थे। आज मैं इस राक्षमपुरी में फंसा हूं, तो तुम ऐसे निश्चित सो रहे हो? कहो, अब कौन मेरी रक्षा करेगा? अरे जानकी देवर लक्ष्मण को याद करके कारागार में सदा रोती है। तुम तो सदा माता के समान उसका आदर करते थे. आज कैसे भूल गए ? अरे, तुम्हारी कुलवधू को राक्षसराज ने बन्दी बना रखा है, ऐसे दुष्ट चोर को बिना दंड दिए तुम्हें इस प्रकार शयन करना उचित है? अरे, बली! तुम्हारे बिना यह वीर हनुमान ऐसे हो रहे हैं, जैसे बिना डोरी का धनुष। ये सुग्रीव, विभीषण, जाम्बवन्त, अंगद, देखो सभी व्याकुल हैं। हां, वीर रघुकुलमणि! अरे धनुर्धर, यदि इस रण में तुम क्लान्त हो गए, तो चलो, वन को लौट चलें। अभागिनी सीता बन्दी ही रहे। अरे, जब माता पूछेगी कि मेरा नयनमणि लक्ष्मण कहां है, तो क्या जवाब दूंगा मैं? उर्मिला को क्या कहूंगा? पुरजनों को क्या कहूंगा?"

यह कहकर वे सिर धुनकर रोने लगे। सब योद्धा भी रोने लगे। एकाएक प्रकाश फैल गया और महामाया प्रकट होकर राम का स्पर्श करके बोलीं, "उठो, वत्स! शोक त्याग करो। तुम्हारा भाई सौमित्र जी उठेगा।"

राम ने चैतन्य होकर कहा, "माता! मैं इस चन्द्र, सूर्य, नक्षत्रयुक्त संसार में लक्ष्मण के बिना जीवित नहीं रह सकता। आज्ञा दीजिए, तो मैं यहीं आपके चरणों में प्राण त्याग दूं।"

"रामभद्र! रुदन बन्द करो। सुलक्षण लक्ष्मण का प्राण अभी उसकी देह में इस प्रकार बद्ध है, जैसे कारागार में बन्दी। अब उसे जीवित करने की जो युक्ति बताती हूं, सो सुनो।"

"देवी! उस युक्ति को करने में हमारे प्राण भी जाएं, तो भी हम करेंगे।"

"राम! तुम तुरन्त सागर के पवित्र जल में स्नान करके मेरे साथ यमालय चलो। शिव की कृपा से तुम सशरीरप्रेतपुर में प्रवेश कर सकोगे। यम स्वयं तुम्हें लक्ष्मण के जीवन-लाभ करने के उपाय बताएंगे। उठो, मैं सुरंगपथ बताऊंगी। तुम सुग्रीवादि दलपतियों की रक्षा में लक्ष्मण को छोड़

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