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पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/५२

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वीर प्रेत ने समीप आकर कहा, "हे, राम! आप यहां सशरीर किस भांति आए हो? मुझे पहचानते हो? तुमने सुग्रीव का पक्ष लेकर अन्याय से मुझे मारा था; पर डरो मत, यहां हम लोग अक्रोधी हैं। देखो, वह जो सुनहरे फूलों का उद्यान दीख रहा है, उसमें सती सीता की रक्षा में प्राण देने वाले जटायु विहार करते है।"

यह सुन राम आगे बढ़े। जटायु ने उन्हें देखा। वह बोला, "अरे, रघुकुलमणि! तुम्हें सशरीर यहां देख मेरे नयन तृप्त हुए। कहो, क्या दुर्मति रावण मारा गया?"

राम ने उत्तर दिया, "तात! आपके पद-प्रसाद से घोर संग्राम में अनेक राक्षस विध्वस्त हो गए हैं। राक्षसपुरी में अकेला रावण रह गया है। उसकी शक्ति से लक्ष्मण मारा गया है, इसलिए यह दास इस दुर्गम देश में शिव के आदेश से आया है। मुझ दास से कहो कि मेरे पिता कहां हैं?"

"वे पश्चिम द्वार पर राजर्षियों में विराजमान हैं। आओ, देखो, वह द्वार स्वर्ग का है और उसके गृह हीरों से जड़े हैं। वहां तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए धर्मराज की पूजा करते हैं। देखो, वह स्वयं तुम्हें देखकर कैसे दौड़े आ रहे हैं।"

दशरथ ने पास आकर दोनों बाहु फैलाकर कहा, "प्राणधिक! तुम इतने दिन से मेरे नेत्रों को तृप्त करने इस दुर्गम देश में आए हो? रामभद्र! तेरे वियोग में बड़े दु:ख सहे। अरे, धर्मपथगामी वत्स! निर्दय विधाता ने मेरे कर्मदोष से तुझे क्लेग दिया।"

राम ने रोते हुए कहा, "तात! अब यह दास अगाध सागर में बहा जाता है। इस विपद में मेरी रक्षा कीजिए। आज घोर रण में भाई लक्ष्मण मारा गया है। उसे मिले बिना मैं चन्द्र-सूर्य-तारों से सुशोभित मृत्युलोक में नहीं जाऊंगा।"

"मैं सब जानता हूं वत्स! पर चिन्ता न करो। लक्ष्मण का प्राण अभी उसके शरीर में बद्ध है। सुनो, गन्धमादन नामक पर्वत पर शृंगदेश में हेम लता नामक एक ओषधि है, उसे लाकर अपने भाई को जीवित करो। आज स्वयं यमराज ने यह उपाय मुझे बताया है। सुनो, तुम्हारा अनुचर हनुमान पवन पुत्र है। वह प्रमंजन सम महाबली है। वह मुहूर्त्त-भर में ओषधि ले आएगा और तुम नियत समय पर विषम संग्राम में रावण का वध कर सकोगे। तुम्हारे बाण से वह पापी सवंश नष्ट होगा। रघुकुलवधू घर लौटकर आवेंगी; परन्तु वत्स! तुम्हारे भाग्य में सुख नहीं है। जैसे धूपदान में गंधरस जलकर गृह को सुगन्धित करता है, उसी तरह तुम्हारा अक्षय सुयश भी देश में व्याप्त रहेगा। पुत्र, भूमण्डल में अब आधी रात बीत गई है,

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