पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/५६

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"सखी! इस शुभ संवाद के लिए तुझे क्या दूं? हाय इतने दिन में अब बन्दिनी के कारागार का द्वार खुलेगा; परन्तु यह हाहाकार की ध्वनि तो बढ़ती ही आ रही है।"

"राक्षसेन्द्र रावण ने राघवराज के साथ सात दिन तक युद्ध-विराम संधि की है। अब वह पुत्र की प्रेतक्रिया के लिए सिन्धु तीर जा रहा है। हाय, दैत्यवाला सुलोचना साध्वी आज पतिपद गोद में रख कर भस्म होगी।"

"अरी, मैं अभागिनी जिस घर में प्रवेश करती हूं, उसी का सुखप्रदीप बुझ जाता है। पति और देवर वनवासी हैं, श्वसुर ने प्राण त्याग दिया, अनेक राक्षसों का मैं काल बनी। देखो, अव अतुलनीया सुन्दरी सुलोचना भस्म होगी।"

"देवी! इसमें तुम्हारा क्या दोष है? राक्षसराज अपने ही कुकर्म के फल से डूब रहा है। तुमने बड़े कष्ट सहे हैं। अब उनका अन्त होने वाला है। मैं जाती हूं। सती को एक बार देख आऊं।"

चौदह

लंका का पश्चिमी द्वार वज्रध्वनि से खुल गया। एक लाख राक्षस हाथ में स्वर्णदण्ड लिए बाहर आए। प्रत्येक के हाथ में रेशमी पताकाएं थीं वे राजपथ के दोनों ओर पंक्ति बांधकर चल रहे थे। सबसे आगे हाथियों की पीठ पर दुन्दुभी थी, जिसका गम्भीर रव दिगन्त में व्याप्त हो रहा था। पैदल सेना कतारों में चल रही थी। हाथी-घोड़े पीछे थे । करुण वाद्य बज रहे थे। असंखा राक्षस वीर स्वर्णवर्म पहने, स्वर्णध्वज लिए, भारी-भारी तलवार कमर में लटकाए, नीचा सिर किए, आगे बढ़ रहे थे। सुलोचना रणवेशं में काले घोड़े पर सवार बाहर निकली। पीछे किंकरी चंवर डुला रही थी। उसके पीछे सहस्र दासियां पैदल चल रही थीं। दासियां कौड़ीखीलें फेंक रही थीं। गायिकाएं शोकपूर्ण करुण गीत गाती चल रही थीं। रावण घोर वन्दन करता हुआ रथ में बैठकर बाहर आया। वह क्षण-क्षण में छाती पीटता और अचेत होता था। उसके पास मेघनाद का शव रखा हुआ था। साथ में धनु, तूणीर, फलक, खडग, शंख, गदा, वस्त्र-कवच आदि भी थे। गाने वाले शोकगीत गा रहे थे। राक्षस फूल और स्वर्णमुद्राएं विखेरते चल रहे थे। सवारी चिता के पास आकर रुक गई।

राक्षस वीर नंगी तलवारें लिए पंक्तिबद्ध खड़े हो गए। ब्राह्मणों ने वेदमंत्र पाठ करके शव को चिता पर रखा। सुलोचना ललाट में सिन्दूरबिन्दु लगाकर, गले में पुष्पमाला पहनकर चिता पर बैठ गई। यह देख

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