अन्तिम विकट युद्ध में राम द्वारा अमोघ कालबाण से रावण का भी वध हुआ और राम विजयी हुए। तेरह मास सीता लंका में रहीं। युद्ध में मृत योद्धाओं के सब विधि-विधान करा और लंका का राज्य विभीषण को देकर राम सीता सहित अयोध्या लौटे।
अयोध्या के राजमहलों में दुन्दुभी बजेने लगी। बहुत लोग राजमहल के प्रांगण में आ-आकर जमा हो। लगे। ऋषि वसिष्ठ ने भरत और मंत्रियों सहित वहां पहुंचकर सबको सम्बोधित करके कहा, "सुनो पुरवासियो! आज चौदह वर्ष बाद महाराज राम अयोध्या में आ रहे हैं। जाओ, अपने-घरों को सजाओ, आनन्द मनाओ। हम भारत के साथ उनकी अगवानी को जा रहे हैं। जो चाहे हमारे साथ चले।"
सब जय-जयकार करके चलने को उद्यत हो गए। इसी समय भरत ने हनुमान को आते देखा। भरत ने वसिष्ठ से कहा, "गुरुदेव! हनुमान आ रहे हैं। प्रतीत होता है महाराज नगर के निकट आ पहुंचे। आइए, वानर राज का स्वागत करें। हनुमान के पास आ भरत ने उनका सत्कार करके पूछा, "हनुमान! स्वागत! स्वागत! अब शीघ्र वह प्रिय सन्देश कहो, हमारे प्राण छटपटा रहे हैं। कहो, महाराज राम को कहां छोड़ा?"
हनुमान ने उतर दिया, "कुमार की जय हो! आप क्या पुष्पक विमान की आहट सुन नहीं रहे हैं? मेरी समझ में तो महाराज ने शान्ति वन को पार कर लिया। यह देखिए, वह विमान आ गया। महाराज! यही वरुण का प्रसिद्ध पुष्पक विमान है, जिसे श्रीराम ने रावण को मारकर पाया है।"
पुष्पक विमान गूंज करता हुआ आ पहुंचा। सब जय-जयकार करने लगे। वसिष्ठ वोले, "कुमार भरत! देखो, राम पुष्पक से उतर रहे हैं। अरे, ऋषिकुमारो! वेदमंत्र पढ़कर रामभद्र की अभ्यर्थना करो। ब्राह्मणो! आप लोग भी स्तुति कीजिए!"
राम पुष्पक से उतर आगे बढ़े और गुरु वसिष्ठ को देखकर उन्हें प्रणाम करते हुए कहा, "ऋषिवर! यह दास राम आपका अभिवादन करता है।"
"सुखी होओ, रामभद्र! तुम्हारी जय हो!"
"सब माताओं का भी मैं अभिवादन करता हूं।"
सब रानियों ने राम को आशीर्वाद देकर कहा, "चिरंजीव रहो भद्र! तुम्हारी जय हो!"
राम ने तब अन्य गुरुजनों प्रणाम करके कहा, "सब गुरुजनों का भी मैं अभिवादन करता हूं!" सबने उन्हें आशीर्वाद दिया।
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