का है, इसीलिए राजा दुनिया का सबसे बड़ा भिखारी होता है।"
"महाराज! मुझे राजनीति की इन बातों से कुछ मतलब नहीं। मैं आपको शुभ समाचार सुनाऊंगी, आप मुझे उसका पुरस्कार दीजिए।"
"क्या पुरस्कार प्रिए!"
"मुंह मांगा पुरस्कार।"
"अच्छी बात है। कहो, शुभ समाचार क्या है?"
"कैसे कहूं?"
"अरे, लजाने लगीं? क्या बात है प्रिये!"
"महाराज!"
"कहो कहो, अरे, तुम्हारा मुंह लाल हो गया? कहीं हमारी गोद तो भरने वाली नहीं है?"
"बड़ों के पुण्य-प्रताप और ऋषियों के आशीर्वाद से ऐसा ही है।"
"सच?"
"हां, आर्यपुत्र!"
"प्यारी! तो हमारी जन्म-भर की आस अब पूरी हुई है?"
"हां, आर्यपुत्र!"
"अहा, वह दिन कब आएगा, जब मैं अपने पुत्र को हाथों खिलाऊंगा?"
"बहुत जल्द आर्यपुत्र!"
"सीते! कहो आज तुम्हें क्या दूं?"
"महाराज! आपका प्यार संसार की सबसे बड़ी वस्तु है, वह मुझे पहले ही मिला हुआ है। अब मुझे और क्या चाहिए?"
"धन्य प्रिये! इसी से लोग तुम्हें प्रियम्वदा कहते हैं।"
सेवक ने आकर सूचना दी कि मुनिवर ऋष्यशृंग के आश्रम से अष्टावक्र मुनि आए हैं। राम ने उन्हें विधिवत अर्ध्यपाद्य से सत्कृत करके लाने की आज्ञा दी। अष्टावक्र के आने पर राम ने उन्हें प्रणाम करके कहा, "मैं राम आपका अभिवादन करता हूं!"
सीता ने भी प्रणाम किया, "मैं जनकसुता सीता आपका अभिवादन करती हूँ!"
अष्टावक्र ने आशीर्वाद दिया, "जय हो महाराज रघुकुलमणि! कल्याण हो भगवती महिषी जनकनन्दिनी!"
राम बोले, "यह आसन है, विराजिए।"
उनके आसन पर बैठने पर ही सीता ने पूछा, "कहिए, ऋषिवर! हमारी सास और ननद शान्ता प्रसन्न तो हैं?"
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