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पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/७

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राज्याभिषेक

हमारी उपन्यासकथा उस समय से आरम्भ होती है, जब राम ने लंका पर चढ़ाई कर रावण के साथ युद्ध छेड़ दिया था। युद्ध के आरम्भ में रावण ने पहले अपने महारथियों को युद्ध में भेजा। जब वह राम द्वारा मार दिए गए, तब रावण ने अतुल बल कुम्भकर्ण को राम से लड़ने के लिए भेजा। कुम्भकर्ग भी मारा गया, तब अपने छोटे पुत्र वीरवाहन को भेजा। वीरवाहन भी वीरगति को प्राप्त हुआ। वीरवाहन की मृत्यु का समाचार लेकर एक सैनिक ने रावण के सभाभवन में प्रवेश किया।

रावण का सभाभवन बिल्लौरी खम्भों पर विविध रत्नों से जड़ा था। छत्र को झालर में बड़े-बड़े मोती लटक रहे थे। बन्दनवारों में भांति-भांति के फूल गुंथे थे। महाबली रावण उच्च सिंहासन पर गिर नवाए बैठा था। बन्धु, मंत्री, सभासद सब अधोमुख बैठे ठंडी सांसें ले रहे थे। उनकी आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी, चंवर-वाहिनियों ने चंवर नीचे कर लिए थे और वे विषण्णवदन खड़ी थीं। छत्रधर ने छत्र पृथ्वी पर झुका दिना था। दंडधर और प्रहरियों ने खड्ग पृथ्वी पर झका दिए थे, योद्धागण शस्त्र उलटे रख चुपचाप खड़े थे। सभा के मध्य में युद्धस्थल मे आया हुआ एक सैनिक धूल और घावों से भरा धरती पर अपने टूटे हुए बचें के सहारे हार बांधे पड़ा रुदन कर रहा था।

रावण ने दीर्घ नि:श्वास छोड़कर पूछा, कह रे कह, पुत्र वीरवाहन का निधन-समाचार एक बार फिर कह।"

सैनिक कातर भाव से हाथ उठाकर बोला, "हाय स्वामी! कैसे कहूँ? महाप्रतापी वीरवाहन के साथ सहस्रों योद्धा समर-सागर में खप रहे। कालबली ने सभी को ग्रस लिया।"

"तो पुत्र वीरवाहन अब पृथ्वी पर नहीं रहा? यह तो स्वप्न की-पी बात है। जिसके भय से देवता भी विकल रहते थे, उसे भिखारी राम ने