पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/८

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कैसे मार डाला? कठोर शाल के वृक्ष को विधाता ने फूल की कोमल पंखुड़ी से चीर दिया? हाय पत्र! हाय वीर शिरोमणि! किस पाप से तुम जैसे पूत्र को खो दिया? अब कैसे इस दु:ख को सहूँगा? अब कान काल में मेरी मान-प्रतिष्ठा की रक्षा करेगा? अरे विधाता! यह पापी राम लकड़हारे की भांति मेरे सैन्यरूपी वन को काटे डालता है। महापराक्रमी भाई कुम्भकर्ण को भी इस भिखारी ने काट डाला। पृथ्वी विजय करना मेरे सारे ही सूरमा एक-एक करके कट गए। अरी अभागिना शूर्पणखा तूने किस कुघड़ी में पंचवटी में इस पोनिया नाग को छेड़ा। हाय! मेरी यह सोने की लंका राख का ढेर हो गई। यह हीरों के हार की भांति जगमगाता हु ई नाटकशाला-सी मेरी आनन्दपूरी लंका श्मशान हो गई!

मन्त्री सारण हाथ जोड़ धैर्य देने आगे बढा। उसने कहा, “वीर मुकुट मणि महाराज! राजन, दास को क्षमादान हो। प्रभु! पृथ्वी पर एसा कौन है, जो आपको समझा सके? आप महाज्ञानी हैं, यदि बिजली से पर्वत की चट्टान टूट जाती है, तो क्या पर्वतराज अधीर हो जाते हैं? महाराज! संसार मायामय है, सुख-दुःख सब झूठा सपना है, अज्ञानी ही इसमें भूलते हैं।'

रावण ने दीर्घश्वास लिया, "मंत्रिवर! तुम्हारा कहना सत्य है, मैं सब जानता हूं, परन्तु मेरा मन हाहाकार कर रहा है। अरे, मेरे हृदय बाग के फूल चुन-चुन कर चोर चुरा ले गया!"

कुछ देर चुप रहकर सैनिक से उसने फिर पूछा, "अरे कह, महाबली वीरवाहन की मृत्यु कैसे हुई?"

महाराज! मैं वह अद्भुत वीरगाथा कैसे कहूँ? उसने मतवाले हाथी के भाँति शत्रुदल में घुसकर उन्हें कुचल डाला। उसकी हुंकार से धरती धसकने लगी। महाराज, उसने ऐसा युद्ध किया कि धरती की धूल ने उड़ कर सूरज को छिपा लिया। बाणों ने आकाश को पाट दिया। उसके हाथ से मारे हुए शत्रुओं का गणना नहीं हो सकती। शत्रु की सेना छिन्न-भिन्न होकर भाग गई। इतने ही में बैरी राम ने कालबाण लेकर युद्धक्षेत्र में प्रवेश किया। अब आगे क्या कहूँ।"

"कह, वह, मैं सुन रहा हूं। तू बैरी राम के पराक्रम का बखान कर।"

"कैसे कहूं? वीरवाहन ने लाल आंखें कर गिद्ध की भांति ज्यों हीरा पर छलांग मारी, त्यों ही उस ने बड़ी सफाई के साथ बाणों से वीर को पाट दिया, फिर तो ऐसा युद्ध हुआ कि देवता चक्ति होकर देखने लगे। शस्त्रों की टनकारों से कानों के पर्दे फट गए, परस्पर शस्त्रों की टक्कर से आग