पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/८६

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(4 सकेगा?" भली भांति हो सकेगा।" किस विधि से ?" वह विधि भगवान वसिष्ठ आपको बताएंगे । आप वसिष्ठ की रेवा में जाइए।" जैसी ऋषिवर की आज्ञा। भाई लक्ष्मण ! इसकी व्यवस्था तुम करो।" कुछ समय बाद राम ने गुरु वसिष्ठ से उनके आश्रम में जाकर भेंट की। वसिष्ठ ने पूछा, “रामभद्र! तुम किसलिए अब मेरे पास आए हो?" "ऋषिवर ! यह दास अब और कहां जाए? आप कहिए, मैं क्या "कठिनाई क्या है रामभद्र !" "गुरुदेव ! छोटे-छोटे राजाओं की मनमानो से प्रजा में शान्ति नहीं रहती है।" 6 करूं?" "तब?" 64 . "एकछत्र राज्य की बड़ी आवश्यकता है।" "तुम प्रतापी राजा हो राम ! एकछत्र राज्य की स्थापना करो।" "ऋषिवर ! मैं अकारण किसी पर चढ़ाई नहीं करूंगा।" तब अश्वमेध यज्ञ करो।" "अश्वमेध ?" "हां, रामभद्र !" "आर्य ! मैं भाग्यहीन, पत्नी और पुत्रहीन राजा हूं। यज्ञ वा अधि- कारी नहीं।" "रामभद्र ! तुम दूसरा विवाह करो। पत्नी और पुत्र तुम्हें प्राप्त होंगे।" "हाय, गुरुवर आप यह क्या कह रहे हैं ?" यह कहकर राम रोने लगे । उन्हें रोते देख वसिष्ठ बोले, “रोते हो रामभद्र ?" "भगवन ! आपने मेरा घाव छू लिया।" "रामभद्र ! तुम तो बालक की भांति अधीर हो गए वत्स !" "गुरुदेव ! सीता को त्यागे आज अठारह वर्प व्यतीत होते हैं।" "होते तो हैं।" आज अठारह वर्षो में मैंने सीता की सुध भी नहीं ली।" "हुआ तो ऐसा ही है।" !